सुनो जनाबे - आली 1 बुलेट पर चढ़ा हूँ जनाबे आली का तोहफा है पाखी दूर देश से रोते आएँ , फरियाद करें कि मुल्क में थोड़ी जगह उनकी भी हो तो आएँ किसान चीखें कि फसल उपजे तो उपजाऊ सपने होते हैं तो चीखें आवाज़ की रफ्तार से चलते हुए सीट के मुलायम मखमल पर रखी जाँघ खुजलता हूँ मुर्ग - मसल्लम खाकर टूथपिक से दाँतों को कुरेदता हूँ। कैसा था भोजन सर , सुनकर सर की हैसियत भोगता हूँ। वेटर के भाई को पुलिस ने केस में फँसा लिया है , वह डर के मारे अपने शहर जाता नहीं है। अरे या ओ - हो जैसी आवाज़ हलक से निकालता हूँ। आह ! सीट पर यह हल्का सा धब्बा कहाँ से आया ! इसी वजह से ज़हन में ऐसे खयाल आ रहे हैं कि नियति पर सोचने लगा हूँ। वेटर , अरे ... । बुलेट पर सवार खिड़की से देखता हैूँ। कुदरत को देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है , मेरा और कुदरत का रिश्ता इतना है कि मैं लेता रहूँ। मुल्क धब्बों से भरा है। रंग - बिरंगे नाम हैं - दाभोलकर , पान्सारे , लंकेश , अखलाक , जुनैद , ज़ुल्फिकार , .... । धब्बे तेजी से दौड़ते आते हैं। बच्चों सी नादानी है धब्बों पर। कुछ लोग रोने लगते हैं। हमने ऐसे लोगों ...