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धरती हँस पड़ती है


सुनो जनाबे-आली
1
बुलेट पर चढ़ा हूँ
जनाबे आली का तोहफा है
पाखी दूर देश से रोते आएँ, फरियाद करें कि मुल्क में थोड़ी जगह उनकी भी हो
तो आएँ
किसान चीखें कि फसल उपजे तो उपजाऊ सपने होते हैं
तो चीखें
आवाज़ की रफ्तार से चलते हुए सीट के मुलायम मखमल पर रखी जाँघ खुजलता हूँ
मुर्ग-मसल्लम खाकर टूथपिक से दाँतों को कुरेदता हूँ। कैसा था भोजन सर, सुनकर सर की हैसियत भोगता हूँ।
वेटर के भाई को पुलिस ने केस में फँसा लिया है, वह डर के मारे अपने शहर जाता नहीं है। अरे या ओ-हो जैसी आवाज़ हलक से निकालता हूँ।
आह! सीट पर यह हल्का सा धब्बा कहाँ से आया! इसी वजह से ज़हन में ऐसे खयाल आ रहे हैं कि नियति पर सोचने लगा हूँ। वेटर, अरे...
बुलेट पर सवार खिड़की से देखता हैूँ। कुदरत को देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है, मेरा और कुदरत का रिश्ता इतना है कि मैं लेता रहूँ। मुल्क धब्बों से भरा है। रंग-बिरंगे नाम हैं - दाभोलकर, पान्सारे, लंकेश, अखलाक, जुनैद, ज़ुल्फिकार, ....। धब्बे तेजी से दौड़ते आते हैं। बच्चों सी नादानी है धब्बों पर। कुछ लोग रोने लगते हैं। हमने ऐसे लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। कहीं फौज-पुलिस तो कहीं संत-बाबा उनके खिलाफ बाक़ी लोगों को समझाते हैं।
अरे, इधर आओ। क्या नाम है?
- बिरसा, भगत, भीमराव।
दो नहीं, तीन। तीन से चार, फिर पाँच, फिर पचास हजार, .... , अनगिनत अनंत बढ़ते जा रहे हैं।
2
अमृतसर में साठ लोग चलती रेलगाड़ी से कटकर मरते हैं, पुलवामा में चालीस आतंकी हमले में मरते हैं, हेलमांद में पच्चीस लोग मरते हैं, सीरिया में दस साल में चार लाख लोग मरते हैं, लोग मरते हैं, जानवर मरते हैं।
दुनिया भर में बहुत बड़ी तादाद में मरे हुए लोग ज़िंदा रहते हैं। गू, मूत, झुग्गियाँ, खुले सीवर, ज़िंदा रहते हैं। मनमोहन, मोदी, ट्रंप, पुतिन, ज़िंदा रहते हैं। बढ़ता ताप, रासायनिक धुँए के बादल ज़िंदा रहते हैं।
कवि पानी में बादल की छाया देखता ज़िंदा रहता है।
3
जनाबे आली की हसरत कि एक दिन इतिहास रुक जाए। धरती सुनकर हँस पड़ती है और हवा में नाइट्रोजन की मात्रा कम-ज्यादा हो जाती है।
सरहद पर घर-परिवार छोड़ लोग कहीं जा रहे हैं। जनाब देखकर खुश होते हैं। पूछते हैं - अभी तक ये लोग ज़िंदा हैं? 2002 से बार-बार यह सवाल पूछते हैं। सामने कोई नहीं होता तो आईने में अक्स से पूछते हैं।
कहीं कोई गाता है - झीनी झीनी बीनी चदरिया। जनाब बौखलाकर तांडव नाचते हैं। आओ, आओ, मालिक आओ, मुर्दा ज़मीं पर ज़िंदा आओ, ज़िंदा आओ मुर्दा खाओ, मुर्दा खाओ बुलेट चलाओ, पाकिस्तान को मार गिराओ, जंग चलाओ, बम, बम, बम बम लहरी गाओ।
4
जनाब को रंजिश कि करोड़ों साल से भीषणकाय जानवरों के पैरों तले, धूमकेतुओं के मार सहती, करोड़ों देव-दानवों के अट्टहासों के बीच बची रही धरती। जनाब ने घोषणा की है कि कोई प्राणी ऐसा नहीं है जिसका आकार जनाब से बड़ा हो। जनाब यह कहते हुए फूलते रहते हैं। जनाब खुद को राष्ट्र कहते हैं। एक के बाद एक राष्ट्र निगलते हुए जनाब धरती से बड़े हो जाते हैं। धरती कहती है कि वक्त ने महादेश बनाए, उन पर जीते जंतु-जानवर बनाए, जनाब को भी बनाया।
जनाब को धरती से मसीहाई बू आती है। जनाब की फौज एक-एक फूल को कुतर रही है, कि कहीं कोई प्राण उग न पाए।
धरती पर उगते ही रहते हैं अंडे, फूटता रहता प्राण। सुंदर का गुंजन जारी रहता है। छिप-छिपे उगते हैं पौधे और उनकी डालों पर घर बसा लेते हैं सपने।
5
सच सुनो कि वही अंत तक रहेंगे।
वे उगते रहेंगे, धरती और सूरज के दरमियान। धनिया और होरी, या किसी और नाम से वे आते रहेंगे, उनके जुलूस झूठ की इमारतें उखाड़ फेंकेंगे।
वे चींटियों सरीखे हैं। जैसा दिखते हैं, वैसे ही हैं, वे हैं अनगिनत। उनके अंडों के ढेर देखो कि हर कहीं हैं, जब खत्म हो गए करोड़ों साल पहले भीमकाय जंतु।
तुम झुकोगे, गिरोगे, खत्म हो जाओगे।
वे रहेंगे, गीत-संगीत में वे रहेंगे, उन्होंने धरती को सींचा है, ख़ूनी पंजों से बचाया है। अनंत काल तक धरती उन्हें अपने सीने में लेकर चूमती रहेगी।
(समकालीन जनमत - 2019)

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