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Showing posts from November, 2017

16 दिसंबर 2002: हमारे समय की राजनीति

(पंद्रह साल पुराना लेख) दैनिक भास्कर,  चंडीगढ़ , सोमवार 16 दिसंबर 2002 यह हमारे समय की राजनीति  है !   प्रसिद्ध अफ्रीकी-अमेरिकी कवि लैंग्सटन ह्यूज की पंक्तियां हैं - एक अपूर्ण स्वप्न का क्या हश्र होगा ? क्या वह धूप में किशमिश दाने जैसा सूख जाएगा ? या एक घाव सा पकता रहेगा - और फिर दौड़ पड़ेगा ? क्या वह सड़े मांस सा गंधाएगा ? या दानेदार शहद सा मीठा हो जाएगा ? शायद वह एक भारी वजन सा दबता जाएगा ? या वह विस्फोट बन फटेगा ? इस साल लैंग्सटन ह्यूज की शतवार्षिकी मनाई जा रही है। इस देश में अंग्रेजी साहित्य पढ़ने वाले लोग भी इस बात से अनजान ही हैं। जैसे पंजाब में करतार सिंह सराभा से अनजान युवाओं की पीढ़ी है। अपने समय की सीमाओं से जूझकर बेहतरी का सपना देखने वालों को हम तब याद करते हैं , जब हम में अपने सपनों को पूरा करने के लिए निरंतर संघर्ष की हिम्मत होती है। परिस्थितियों से हारते हुए हमारे सपने घाव से पकते हैं , उनमें से सड़े मांस की बदबू निकलती है। और विस्फोट जब होता है , तो उसमें जुझारू संघर्षों की जीत नहीं , अज्ञानता और पिछड़ेपन का का...

पत्राचार से तालीम पर सवाल

पत्राचार से तालीम पर सवाल कुछ और भी हैं (' राष्ट्रीय सहारा ' में 9 नवंबर 2017 को ' संजीदा होना होगा ' शीर्षक से प्रकाशित ) सुप्रीम कोर्ट ने हाल में एक अहम फैसला दिया है कि तकनीकी शिक्षा पत्राचार के माध्यम से नहीं की जा सकेगी। सतही रूप से यह बात ठीक लगती है कि तकनीकी तालीम घर बैठे कैसे हो सकती है। खास तौर पर जब ऊँची तालीम के मानकीकरण करने वाले आधिकारिक इदारे यूजीसी और एआईसीटीई ने जिन सैंकड़ों डीम्ड यूनिवर्सिटीज़ को इस तरह के पत्राचार के कार्यक्रम चलाने की इजाज़त नहीं दी है , तो उनकी डिग्री को सचमुच मान्यता नहीं मिलनी चाहिए। अधिकतर लोगों के मन में वाजिब सवाल यह भी है कि ऐसे मुल्क में जहाँ आधी से अधिक जनता मिडिल स्कूल तक नहीं पहुच पाती है और जहाँ सरकार ' स्किल इंडिया ' जैसे छलावों से अधिकतर युवाओं को मुख्यधारा की तालीम से अलग कर रही है , तो ये लोग कहाँ जाएँगे ? ऐसा अनुमान है कि इस फैसले का असर उन हजारों युवाओं पर पड़ेगा , जिन्हें 2005 के बाद पत्राचार से तकनीकी कोर्स की डिग्री मिली है। उनके सर्टीफिकेट अमान्य हो जाएँगे और इसके आधार...