(पंद्रह साल पुराना लेख) दैनिक भास्कर, चंडीगढ़ , सोमवार 16 दिसंबर 2002 यह हमारे समय की राजनीति है ! प्रसिद्ध अफ्रीकी-अमेरिकी कवि लैंग्सटन ह्यूज की पंक्तियां हैं - एक अपूर्ण स्वप्न का क्या हश्र होगा ? क्या वह धूप में किशमिश दाने जैसा सूख जाएगा ? या एक घाव सा पकता रहेगा - और फिर दौड़ पड़ेगा ? क्या वह सड़े मांस सा गंधाएगा ? या दानेदार शहद सा मीठा हो जाएगा ? शायद वह एक भारी वजन सा दबता जाएगा ? या वह विस्फोट बन फटेगा ? इस साल लैंग्सटन ह्यूज की शतवार्षिकी मनाई जा रही है। इस देश में अंग्रेजी साहित्य पढ़ने वाले लोग भी इस बात से अनजान ही हैं। जैसे पंजाब में करतार सिंह सराभा से अनजान युवाओं की पीढ़ी है। अपने समय की सीमाओं से जूझकर बेहतरी का सपना देखने वालों को हम तब याद करते हैं , जब हम में अपने सपनों को पूरा करने के लिए निरंतर संघर्ष की हिम्मत होती है। परिस्थितियों से हारते हुए हमारे सपने घाव से पकते हैं , उनमें से सड़े मांस की बदबू निकलती है। और विस्फोट जब होता है , तो उसमें जुझारू संघर्षों की जीत नहीं , अज्ञानता और पिछड़ेपन का का...