मैं अपनी गुफा से निकला मेरे दाँतों से खून टपक रहा मुझे पकड़ने की कोशिश में थक - चूर रहे लोकतंत्र के प्रहरी सूरज , लबालब कालिमा लपेटे तप रहा आधा आस्मान समेटे अमात्य खोद रहा खाइयाँ गिरते चले विरोधी शक्तिपात कर दिया है मैंने उसमें मुझसे ज्यादा ही दिखला रहा वह असर मैंने अनधुले दाँतों पर सफेद रंग चढ़ाया मुझे मिलता रहा खून का स्वाद और लोगों ने देखी मेरी धवल मुस्कान मेरी जादुई छड़ी किसी को नहीं दिखती विजय पताका फहराती किला दर किला काली घनघोर काली हवाएँ ज़हरीली साँस लिए मुड़ रहीं रोशनी काँपती - सी दूर होती जा रही। I came out from my caves Blood dripping from my teeth And the sentries of democracy Are exhausted in their attempts to catch me The sun, drenched in darkness Stretched out hot in half the sky My minister digging pits And my rivals falling in them I have poured power in him He is even more excited than me...