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Showing posts from October, 2015

शिथिल सफेद तारे धीमे चलते रहे

सेरा टीसडेल फिर फिर - Summer Night, Riverside In the wild soft summer darkness How many and many a night we two together Sat in the park and watched the Hudson Wearing her lights like golden spangles Glinting on black satin. The rail along the curving pathway Was low in a happy place to let us cross, And down the hill a tree that dripped with bloom Sheltered us, While your kisses and the flowers, Falling, falling, Tangled in my hair.... The frail white stars moved slowly over the sky. And now, far off In the fragrant darkness The tree is tremulous again with bloom For June comes back. To-night what girl  Dreamily before her mirror shakes from her hair This year’s blossoms, clinging to its coils? नदी के तट पर , बसंत की शाम ग़र्मियों के पागल मुलायम अँधेरे में कितनी रातें तट पर बाग़ में बैठ रोशनियों को काले साटन पर झिलमिलाते चमकियों सा पहनी नदिया को  हम दोनों साथ देखा किए। मुड़ती पग...

अक्स खुली हवा चाहता है

कोई लकीर सच नहीं होती कोई कहे कि आईने में शक्ल तुम्हारे दुश्मन की है , तो क्या मान लूँ ? अक्स खुली हवा चाहता है। उसके जीवन में हैं प्रेम और दुःख जिनको वह भोगता है अकेले क्षणों में। लकीरें बनाई जाती हैं जैसे बनाए जाते हैं बम हथियार। कुकुरमुत्ता बादलों की तरह वे उगती हैं प्यार के खिलाफ। हम पढ़ते हैं मनुष्य के खूंखार जानवर बनने की कथाएं। बनते हैं इतिहास जो हम बनना नहीं चाहते। इसलिए उठो ऐ शरीफ इंसानों। अँधेरे आकाश में चमक रहा नक्षत्र अरुंधती। उठो कि मतवालों की टोली में जगह बनानी है। अक्स खुली हवा चाहता है।                                                              (जलसा -4: 2015)

पहले तो जीवन है

नफ़रत की संस्कृति का विरोध ज़िंदगी की पहचान है  ( 18 अक्तूबर 2015 के 'दैनिक भास्कर' के  'रसरंग' पंजाब-चंडीगढ़ संस्करण और 2 2 अक्तूबर 2015 को रविवार वेब मैगज़ीन में प्रकाशित) - अखबार में आखिरी पैरा नहीं आया है। देश भर में तकरीबन पचीस साहित्यकारों ने अपने अर्जित पुरस्कार लौटाते हुए मौजूदा हालात पर अपनी चिंता दिखलाई है। जब सबसे पहले हिंदी के कथाकार उदय प्रकाश ने पुरस्कार लौटाया तो यह चर्चा शुरू हुई कि इसका क्या मतलब है। क्या एक लेखक महज सुर्खियों में रहने के लिए ऐसा कर रहा है। और दीगर पेशों की तरह अदब की दुनिया में भी तरह - तरह की स्पर्धा और ईर्ष्या हैं। इसलिए हर तरह के कयास सामने आ रहे थे। उस वक्त भी ऐसा लगता था कि अगर देश के सभी रचनाकार सामूहिक रूप से कोई वक्तव्य दें तो उसका कोई मतलब बन सकता है , पर अकेले एक लेखक के ऐसा करने का कोई खास तात्पर्य नहीं है। अब जब इतने लोगों ने पुरस्कार लौटाए हैं , यह चर्चा तो रुकी नहीं है कि सचमुच ऐसे विरोध से कुछ निकला है या नहीं , पर साहित्यकारों को अपने मकसद में इतनी कामयाबी तो मिली है कि केंद्रीय संस्कृति मंत्री...

जो भी पास है दे दो

जो मारे गए क्या वे चुप हो गए हैं ? नहीं , वे हमारी आँखों से देख रहे हैं पत्तों फूलों में गा रहे हैं देखो , हर ओर उल्लास है।    और और और सेरा टीसडेल - The Kiss Before you kissed me only winds of heaven Had kissed me, and the tenderness of rain— Now you have come, how can I care for kisses Like theirs again? I sought the sea, she sent her winds to meet me, They surged about me singing of the south— I turned my head away to keep still holy Your kiss upon my mouth. And swift sweet rains of shining April weather Found not my lips where living kisses are; I bowed my head lest they put out my glory As rain puts out a star. I am my love’s and he is mine forever, Sealed with a seal and safe forevermore— Think you that I could let a beggar enter Where a king stood before? बोसा   चूमा तुमने मुझे पेशतर इसके सिर्फ जन्नत की हवाओं और बारिश की नाज़ुकी ने मुझे चूमा था, अब जो आ गए हो तुम,उनके बोसों की मुझे क्या परवाह? मैंने समंदर को तलाशा,उसने अपन...