सेरा टीसडेल फिर फिर -
Summer Night, Riverside
In the wild soft summer darkness
How many and many a night we two together
Sat in the park and watched the Hudson
Wearing her lights like golden spangles
Glinting on black satin.
The rail along the curving pathway
Was low in a happy place to let us cross,
And down the hill a tree that dripped with bloom
Sheltered us,
While your kisses and the flowers,
Falling, falling, Tangled in my hair....
The frail white stars moved slowly over the sky.
And now, far off
In the fragrant darkness
The tree is tremulous again with bloom
For June comes back.
To-night what girl
Dreamily before her mirror shakes from her hair
This year’s blossoms, clinging to its coils?
नदी
के तट पर,
बसंत
की शामग़र्मियों के पागल मुलायम अँधेरे में
कितनी रातें
तट पर बाग़ में बैठ
रोशनियों को काले साटन पर झिलमिलाते चमकियों सा पहनी नदिया को
हम दोनों साथ देखा किए।
मुड़ती पगडंडी पर उस ख़ुश जगह जंगले की छड़ नीचे
झुकी थी कि हम अंदर घुस जाएँ
और ढलान पार उस पेड़ ने जो फूलों से लदा था हमें पनाह दी,
तुम्हारे बोसे और फूलों की बौछारें मेरे बालों में फँसती रहीं...
आस्मां में शिथिल सफेद तारे धीमे चलते रहे।
अब दूर खुशबू भरे अँधेरे में
फूलों से लदा पेड़ फिर काँप रहा है कि
बसंत वापस आ रहा है।
कौन है यह लड़की जो आज की रात
आईने के सामने अपनी ज़ुल्फों में फँसे
इस साल के फूलों को झटक कर गिरा रही है?
I Love You
When April bends above me
And finds me fast asleep,
Dust need not keep the secret
A live heart died to keep.
When April tells the thrushes,
The meadow-larks will know,
And pipe the three words lightly
To all the winds that blow.
Above his roof the swallows,
In notes like far-blown rain,
Will tell the little sparrow
Beside his window-pane.
O sparrow, little sparrow,
When I am fast asleep,
Then tell my love the secret
That I have died to keep.
तुमसे प्यार है
जब बसंत मुझ पर झुक कर देखे
कि मैं हूँ गहरी नींद में खोई,
ज़िंदा दिल जो छिपाए रख गुज़र गया
क्यों न उजागर करे ख़ाक कोई ।
जब बसंत तूतियों से कह देगा,
फिर बुलबुलों से भला क्या छिपना,
मद्धिम सुर में गाएँगी जो वे लफ्ज़
सुनते हुए हवाओं को उनको बहना।
अबाबीलें उसकी छत के ऊपर
दूर कहीं बरसात की धुन में,
उसकी खिड़की के शीशे के पास
कहेंगी छोटी गौरैया के मन में।
ऐ गौरैया,ऐ नन्ही गौरैया,
मैं अब गहरी नींद में जब हूँ,
जो बात छिपाती मैं चली आई,
मेरे प्रिय से जा कह दे तू। (सदानीरा 2015)
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