चलो मन आज चलो मन आज खेल की दुनिया में चलो स्वर्ण पदक ले लो विजेता के साथ खड़े होकर निशानेबाज बढ़िया हो बंधु कहो उसे मैच जो नहीं हुआ दर्शक - दीर्घा में नाराज़ लोगों को कविता सुनाओ पैसे वाले खेलों को सट्टेबाजों के लिए छोड़ दो मैदानों में चलो जहाँ खिलाड़ी खेलते हैं खिंची नसों को सहेजो घावों पर मरहम लगाओ गोलपोस्ट से गोलपोस्ट तक नाचो कलाबाजियों में देखो मानव सुंदर खेलता ढूँढता है घास अपना पूरक बनता हरे कैनवस पर भरपूर प्राण चलो मन आज खेल की दुनिया में चलो ( अमर उजालाः 2008) खेल कई अपूर्ण इच्छाओं में एक अच्छा फुटबालर बनने की है सरपट दौड़ता साँप सा बलखाता धनुष बन स्ट्रेट और बैक वाली करता कंधों के ऊपर से उड़ता नाचता राइट हाफ एक इच्छा दुनिया को मन मुताबिक देखने की है भले लोगों को गले लगाता बुरों को समझाता जादुई हाथों से सबके घाव सहलाता सबका चहेता मैं इच्छाओं को धागों से बाँध रखा मैंने कभी देख लेता हूँ मन ही मन खेलता हूँ उन्हें पूरे करने के खेल। ...