यह आलेख छत्तीसगढ़ खबर में छपा है - मेरे मुहल्ले में मोदी मुहल्ले में मोदी ! अब यह तो कोई शिकवा नहीं हो सकता ! मोदी नहीं राहुल गाँधी भी आते तो कौन सा हमारी शटल मुझे पिक अप करने के लिए सुबह खड़ी होती ! मुझे फिर भी घूम घाम के गलियों में से जाना होता ! वह तो शुक्र है कि लौटते हुए शटल के ड्राइवर को इस तरफ से घर जाना था और वह उस भयंकर चौराहे तक छोड़ गया जहाँ सोलह दिशाओं से गाड़ियाँ आती हैं और हर गाड़ी आठ दिशाओं में जा सकती है। इसी के बारे में मैंने कहीं कविता लिखी है न कि ईश्वर के एक सौ आठ नाम हैं , बाकी बीस यम के धाम ! तो मुहल्ले में मोदी ! लौटते हुए एक किलोमीटर चलते हुए सिर्फ एकबार किसी ने रोका और वी आई पी पास माँगा। मैं घबरा गया पर जब उसे कहा कि मैं तो यहीं पीछे रहता हूँ तो उसने जाने दिया। घर पहुँचकर जल्दी से फ्रेश होकर मैं स्टूल उठा कर बैलकनी में आ गया। यहाँ से रैली का मैदान भी दिखता था और गुड बैड नो गवर्नेंस पर कन्नड़ में चल रहा शोर भी सुना ई पड़ रहा था। आखिर देर से मोदी आए। दूसरे तमाम बड़े लोगों के बाद बंगलौर के भाई बहनों को उन्होंने नमस्कार कहा। फिर उन्होंने भाषण ...