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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Saturday, April 26, 2014

क्यों चुप हो ?


एक सौ छठी बार

आज मैं
एक सौ छठी बार
बच्चा बनूँगा

चिढाऊँगा सबको
जीभ मोड़ मोड़
आँखें झपक झपक
जब सब हँसते रहेंगे
धीरे धीरे उनकी तस्वीरें
बना रख लूँगा
अपने खयालों में

रात को
जब सब सो जायेंगे
खोल लूँगा
अपने औजारों का बक्सा

चुन चुन
उनकी तस्वीरें
क्षत-विक्षत कर दूँगा
चीखते हुए

क्यों चुप हो ?
क्यों चुप हो ?
(साक्षात्कार - 1987)

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3 Comments:

Blogger अफ़लातून said...

अद्भुत , गजब !

8:03 AM, April 26, 2014  
Blogger Unknown said...

impressive

8:08 AM, April 26, 2014  
Blogger dr.mahendrag said...

अजब दास्ताँ है ये

5:07 PM, April 27, 2014  

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