क्यों चुप हो ?
एक
सौ छठी बार
आज
मैं
एक
सौ छठी बार
बच्चा
बनूँगा
चिढाऊँगा
सबको
जीभ
मोड़ मोड़
आँखें
झपक झपक
जब
सब हँसते रहेंगे
धीरे
धीरे उनकी तस्वीरें
बना
रख लूँगा
अपने
खयालों में
रात
को
जब
सब सो जायेंगे
खोल
लूँगा
अपने
औजारों का बक्सा
चुन
चुन
उनकी
तस्वीरें
क्षत-विक्षत कर दूँगा
चीखते
हुए
क्यों
चुप हो ?
क्यों
चुप हो ?
(साक्षात्कार
- 1987)
Labels: कविता, दमन और विरोध
3 Comments:
अद्भुत , गजब !
impressive
अजब दास्ताँ है ये
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