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Showing posts from July, 2011

मुंबई हो या ओस्लो

पिछले चिट्ठे में हल्के मिजाज में मैंने लिखा था कि गंभीर फ्रांसीसी फिल्म याद नहीं आ रही। इस पर मित्रों ने याद दिलाया कि भइया त्रुफो गोदार्द को मत भूलो। अरे यार ! मैं मजाक कर रहा था। दोपार्दू भी मेरा प्रिय अभिनेता रहा है। नार्वे में हुई भयानक घटना के साथ भारत की समकालीन राजनीति का जो संबंध उजागर हो रहा है , उसे जानकर एक ओर तो कोई आश्चर्य नहीं होता , साथ ही अवसाद से मन भर जाता है। अवसाद इसलिए भी कि हमारे बीच कई लोग ऐसे हैं जिन्हें उस आतंकी की बातों से सहमति होगी। उसकी एक बात जो हैरान करने वाली है , वह है कि लोगों में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए मुसलमानों को मत मारो , ऐसी आतंक की घटनाओं को अंजाम दो , जिसमें आम लोग बड़ी तादाद में मारे जाएँ। सरकारें अपनी गुप्तचर संस्थाओं के जरिए एक दूसरे के मुल्कों में या कभी अपने ही मुल्क में इस तरह की जघन्य हरकतें करती रहती हैं , यह तो सुना था , पर आतंकवादी ऐसे विचारों से संचालित हो रहे हों तो आदमी कहाँ छिपे। पर जीवन तो चलता ही रहता है। मुंबई हो या ओस्लो , जीवन का संघर्ष निरंतर है। हम उम्मीद करते रहेंगे , वह सुबह आएगी , जब ऐसी बीमारि...

आए! आए आए आए!

दोस्तों ! इस बार स्कूटर चल गया। ओए बजाज , बजाज ओए ! तो शुक्रवार को हमने फ्रांसीसी फिल्लम देखी। Ensemble cest trop – टिपिकल फ्रांसीसी फिल्म। संबंधों पर चुटकी , यौनिकता यानी सेक्सुआलिटी पर चुटकी , यह फ्रांसीसी फिल्मों की खासियत है। मुझे याद नहीं आ रहा कि मैंने कभी कोई गंभीर फ्रांसीसी फिल्म कभी देखी हो। कोई तो ज़रूर देखी होगी। जेरार्द देपार्दू की शक्ल देखते ही लगता है बंदा शरारती है। यह अलग बात कि वह ' दाँतों ' का अभिनय भी कर सकता है। इस दौरान बड़ी बात यह हुई कि प्रत्यक्षा ने लोर्का के ''Pequeño vals vienés' के आना बेलेन द्वारा गायन की लिंक भेजी। मैंने शब्दों के बारे पूछा , तो जो लिंक उसने भेजी , उससे पता चला कि अंग्रेज़ी के प्रख्यात कवि लेनर्ड कोहेन ने भी इसे अंग्रेज़ी में गाया है। फिर वह भी ढूँढा। आए! आए आए आए! ओ हो हो ( वही टिपणिया स्टाइल ) – आए! आए आए आए! क्या बात है !

अखिल गति

निकला था कोरियन फिल्में देखने , सड़क पर स्कूटर ठप्प बोल गया। हुआ यह कि एक दिन और एक रात स्कूटर बेचारा उल्टा गिरा हुआ था। ठहरा स्कूटर – किसको फिकर कि सीधा कर दे। एक जमाने में अपुन भी गाड़ी वाले थे। जिसके लिए वह गाड़ी ली थी , वह लाड़ली धरती के दूसरी ओर चली गई तो मैंने गाड़ी को विदा कह दिया। मुहल्ले में ही है , सच यह कि अभी भी कागजी तौर पर मालिक मैं ही हूँ , पर वह मेरी नहीं है। खैर , स्कूटर अब भी मेरा ही है। हालांकि अब मैं पहले जैसा फटीचर टीचर होने का दावा नहीं कर सकता , पर स्कूटर और मैं एक दूसरे के हैं। तो एक पूरा दिन और एक पूरी रात स्कूटर बेचारा उल्टा गिरा पड़ा रहा। शुकर पड़ोसन का कि उसने फोन किया ( क्या जमाना कि पड़ोसी से भी फोन पर बात होती है ) कि मियाँ , भाई जान , यह आप की ही औलाद लगती है , सँभालिए बेचारे को। जब मैंने सँभालने की शिरकत की तो बेचारा धूल धूसरित पड़ा हुआ था। बहरहाल आज बड़ी देर तक मन ही मन वाद विवाद करता रहा। दसेक किलोमीटर चलना है , शेयर आटो + बस + ग्यारह नंबर गाड़ी या अपना बेचारा स्कूटर। आखिर इतवार का दिन ( मतलब ट्राफिक कम – भारतीय सभ्यता से सामना होने का खतरा ...

झमाझम मेघा और मेधा की मार

अभी पाँच मिनट पहले से झमाझम बारिश हो रही है। यहाँ मानसून आए एक महीना हो गया। इन दिनों लगातार संस्थान में भर्ती लेने आए प्रार्थियों के लिए अलग अलग स्तर की कई साक्षात्कार समितियों में बैठना पड़ रहा है। चूँकि विज्ञान और मानविकी दोनों में मेरा हस्तक्षेप रहा है , इसलिए मेरी दुर्दशा औरों की तुलना में अधिक है। रविवार को भी छुट्टी नहीं। कल से जिन पैनेल्स में बैठा हूँ , उनका संबंध मानविकी और भाषा विज्ञान से है। हमारे यहाँ कुछ अनोखे प्रोग्राम हैं। पाँच साल में कंप्यूटर साइंस में बी टेक और मानविकी या भाषा विज्ञान या प्राकृतिक विज्ञान जैसे किसी डोमेन ( विशेष क्षेत्र ) में एम एस , की दो डिग्रियाँ - शुरू से ही डोमेन विषयों में शोधकार्य पर जोर है। खैर , कल उज्जैन से आए एक छात्र से कुछ कोशिश कर कालिदास का नाम निकलवाया , पर कालिदास की किसी कृति का नाम नहीं निकला। रोचक बात यह थी कि महाकाल मंदिर में जाने पर कैसे एक अलौकिक शक्ति की उपस्थिति का आभास होता है , यह जानकारी उसने हमें दी। आज इलाहाबाद से आयी एक बालिका ने बड़ी कोशिश कर याद किया कि उसने स्कूल के पाठ्यक्रम में किसी स्त्री लेखिका की कुत्ते पर ...