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Showing posts from January, 2010

मेरे निजी संघर्षों का भी नायक

कल फोन आया - मेरा नाम धीरेश है। मैं केरल आया हूँ, मुझे पता चला कि हावर्ड ज़िन की डेथ हो गई है। हावर्ड ज़िन की डेथ हो गई है थोड़ी देर वाक्य कानों में गुजरता रहा। शायद साल भर पहले की बात है जब भारतभूषण से कहा था कि हावर्ड ज़िन से बात करो और जितना अनुवाद मैंने किया है, उसके आगे कर डालो, पता नहीं कब तक है यह शख्स! 1987 में जब एकलव्य संस्था के सामाजिक शिक्षण कार्यक्रम के साथियों के साथ जुड़ा तो देखा कि जे एन यू की ऊँची नाक मुझ अदने विज्ञान के अध्यापक के सामाजिक अध्ययन पर काम करने की इच्छा झेल नहीं पा रही। थोड़ा बहुत हस्तक्षेप करता रहता। तभी नई तैयार हो रही पाठ्य-पुस्तक में अमरीका पर लिखा अध्याय देखा तो रहा नहीं गया। लगा कि बहुत ज़रुरी है कि अमरीका पर जानकारी के वैकल्पिक स्रोत हिंदी में उपलब्ध होने चाहिए। हावर्ड ज़िन की People's History of the United States चंडीगढ़ से ट्रक में आने वाली थी। फिर हरदा में बैठकर पहले अध्याय का अनुवाद किया जो 'पहल' में छपा। ज्ञानरंजन ने कोलंबस की डायरी के पन्नों के वाक्यों को अंक के विज्ञापन के लिए इस्तेमाल किया। मैंने छपे पन्नों की फोटोकापी क...

धूप निकल आई है

कल रात चंडीगढ़ आस पास के इलाकों से भी ज्यादा ठंडा रहा। अखबार में है कि शिमला का न्यूनतम तापमान भी चंडीगढ़ से ऊपर था। मौसम विभाग का कहना है कि आबोहवा में कुछ पश्चिमी घुसपैठ हुई है। चलो यह भी सही। एक मित्र ने सही कहा कि क्यों रोते हो उनकी सोचो जिनके पास न गर्मियों में न सर्दियों में पहनने को कपड़े होते हैं। मैं खुद को निष्कर्मा महसूस करता हूँ और देखता हूँ कि इस कड़ाके की ठंड में घर में महिलाएँ और बाहर सिर्फ गरीब मजदूर ही काम करते हैं। पिछले जमानों की तुलना में जीवन काफी सुखद है, तक्नोलोजी की वजह से तकलीफ कम है, घर घर में हीटर हैं। कम से कम पश्चिमी मुल्कों के बारे में तो कहा जा सकता है कि तक्नोलोजी से समाज के सभी हिस्सों को इतना फायदा तो हुआ है कि बिजली, पानी और गर्मी की सप्लाई भारी से भारी बर्फबारी के बावजूद हर तरफ चालू है। तक्नोलोजी के विरोध में तर्क होगा कि कुछ पीढ़ियों को यह फायदा मिलेगा, पर बाद में जब ऊर्जा के संसाधन खत्म होने लगेंगे, तो जंग लड़ाई मार और धरती के विनाश के अलावा कुछ नहीं बचेगा। मैं इस चिंता में सहभागी हूँ, पर यह भी मानता हूँ कि आधुनिक तक्नोलोजी का विकल्प यह नहीं कि व...

ठंड के दो दिन और

इधर कुछ दिनों से चंडीगढ़ में भयंकर ठंड की मार से परेशान रहा। पिछले शुक्रवार को सीमांत अंचल के एक कालेज में भाषण का न्यौता आया तो खुशी खुशी चला। शनिवार को कोई दो तीन सौ छात्राओं से बात चीत हुई। विज्ञान, दर्शन आदि के अलावा कविता पर भी बातें हुईं। दो ईरानी फिल्में भी ले गया था - पनाही की 'आफसाइड' और मखमलबाख की 'द डे आई बिकेम अ वुमन (रोज़ी के ज़ान शोदाम)'। रविवार को कालेज का वार्षिक मेले का उद्घाटन किया और वापस लौटा। जितना अच्छा युवाओं के बीच रहने से लगा, उतनी ही कोफ्त औपचारिकताओं से हुई। ऐसे अवसरों पर बार बार अपनी प्रशंसा सुनते हुए अजीब सा लगता है, क्योंकि हर ऐरे गैरे के लिए इसी ही तरह के प्रशंसात्मक भाषण होते हैं, यह छोटे शहर की मानसिकता है। बहरहाल इसी बहाने ठंड के दो दिन और कटे, कुछ सार्थक बातचीत हुई और अच्छा लगा कि बड़े शहरों से दूर सीमावर्त्ती इलाके में भी बौद्धिक सक्रियता है। हुसैनीवाला चेकपोस्ट पर भी गए और वही बेवकूफी भरी रीट्रीट सेरीमोनी देखी, जिसमें नफरत का प्रदर्शन कर तालियाँ ली जाती हैं, इस बारे में पहले भी कभी लिखा है। ********************************** म...