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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Monday, January 18, 2010

ठंड के दो दिन और

इधर कुछ दिनों से चंडीगढ़ में भयंकर ठंड की मार से परेशान रहा। पिछले शुक्रवार को सीमांत अंचल के एक कालेज में भाषण का न्यौता आया तो खुशी खुशी चला। शनिवार को कोई दो तीन सौ छात्राओं से बात चीत हुई। विज्ञान, दर्शन आदि के अलावा कविता पर भी बातें हुईं। दो ईरानी फिल्में भी ले गया था - पनाही की 'आफसाइड' और मखमलबाख की 'द डे आई बिकेम अ वुमन (रोज़ी के ज़ान शोदाम)'।
रविवार को कालेज का वार्षिक मेले का उद्घाटन किया और वापस लौटा। जितना अच्छा युवाओं के बीच रहने से लगा, उतनी ही कोफ्त औपचारिकताओं से हुई। ऐसे अवसरों पर बार बार अपनी प्रशंसा सुनते हुए अजीब सा लगता है, क्योंकि हर ऐरे गैरे के लिए इसी ही तरह के प्रशंसात्मक भाषण होते हैं, यह छोटे शहर की मानसिकता है। बहरहाल इसी बहाने ठंड के दो दिन और कटे, कुछ सार्थक बातचीत हुई और अच्छा लगा कि बड़े शहरों से दूर सीमावर्त्ती इलाके में भी बौद्धिक सक्रियता है।
हुसैनीवाला चेकपोस्ट पर भी गए और वही बेवकूफी भरी रीट्रीट सेरीमोनी देखी, जिसमें नफरत का प्रदर्शन कर तालियाँ ली जाती हैं, इस बारे में पहले भी कभी लिखा है।
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मेरे पास कामरेड ज्योति बसु के साथ मेरा एक फोटोग्राफ था। करीब बीस साल पहले एक बार वामपंथी छात्रों के बुलाने पर वे पंजाब यूनिवर्सिटी आए थे। 'संस्कृति' नामक जिस संस्था का बुलावा था, उसका फैकल्टी पेट्रन मैं था। इसलिए उनके साथ ही बैठा था। आज हिंदू में उन पर लिखा वाक्य पढ़ा कि कपड़ों के मामले में 'He was immaculate in dress and bearing...' तो याद आया कि फोटो में मेरा सस्ता मोजा जिसका इलास्टिक खराब हो गया था दिखता था। इस बात से मुझे थोड़ी झेंप भी थी। मुझे याद आ रहा है कि स्टेज पर उनके साथ बैठने में मुझे झिझक तो थी ही, लड़कों के कहने पर बैठ ही गया तो थोड़ी थोड़ी देर बाद मोजा खींच रहा था। पाँचेक साल पहले सी पी एम के राज्य सचिव बलवंत सिंह ने (वे भी उस फोटो में थे - ज्योति बाबू के एक ओर मैं था - दूसरी ओर बलवंत सिंह; अब ये पार्टी में नहीं हैं) मुझसे वह फोटोग्राफ ले लिया। संस्कृति में उन दिनों जो छात्र नेतृत्व की भूमिका में थे, उनमें से एक फिल्म इंडस्ट्री में है, दूसरा अमरीका में है। ये सी पी एम के छात्र संगठन एस एफ आई से जुड़े थे। चूँकि 'संस्कृति' अपने आप में सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए बनाई गई थी, इसलिए तय हुआ था कि पार्टी के नारे नहीं लिए जाएँगे। पर जब ज्योति बाबू आए तो एस एफ आई के लड़कों ने लाल सलाम के नारों से आस्मान फाड़ दिया। इससे जो सी पी आई के छात्र संगठन ए आई एस एफ वाले और दूसरे छात्र थे, उनको बड़ी कोफ्त हुई। मैं खुद ज्योति बाबू के साथ स्टेज तक चलते हुए असमंजस में था, पर सच यह है कि आज मुझे बड़ा अफसोस है कि वह फोटो मेरे पास नहीं है।

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2 Comments:

Anonymous धीरेश said...

wo photo dekhne kee utsukta badh gayee hai.

3:56 PM, January 19, 2010  
Anonymous Anonymous said...

Sach hai kya yeh shab ya faltu kahani.Lekhak aise hi topi pahanata hain. sochte rahte hain kuchh bhi.

5:01 AM, February 05, 2010  

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