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Showing posts from April, 2007

यह भी अश्लील ही

प्रत्यक्षा की मेल आई कि हंस में कहानी आई है और कि ब्लॉग शांत पड़ा है। घर जाकर प्रत्यक्षा की कहानी पढ़ेंगे। फिलहाल चिट्ठागीरी की जाए। बेचैनी तो रहती है कि यह लिखें ओर वो लिखें पर ..........। होता यह है कि इसके पहले कि जरा सा वक्त निकाल पर कुछ लिखने की शुरुआत करें, उसके पहले ही कहीं कुछ और हो जाता है। पहले के खयाल इधर उधर भटकने लगते हैं और दूसरी चिंताएँ दिमाग में हावी हो जाती हैं। अब दो हफ्तों से सोच रहा था कि विज्ञान और मानविकी के इंटरफ़ेस यानी ये कहाँ जुड़ते हैं और कहाँ टूटते हैं पर हमारे यहाँ एक सम्मेलन हुआ, उस पर लिखें। उस पर क्या उसमें जम कर हुई बकवास पर लिखें, पर इधर अमरीका के वर्जीनिया टेक में हुई दुर्घटना ने उस बेचैनी को इस बेचैनी से विस्थापित कर दिया। छिटपुट बेकार बातें, जैसे बी जे पी वालों का सीडी (इस शब्द को अंग्रेज़ी में पढ़ें) प्रकरण या धोनी ने धुना नहीं तो धोनी को धुन दो जैसी जाहिल बातें तो इस महान मुल्क में चलती ही रहती हैं, उनके बारे में सही बातें लिखकर अंजान भाइयों को दुःखी कर क्या लाभ! बहरहाल, थोड़ा सा पहले की चिंता पर लिखता हूँ। विज्ञान के बारे में संशय और चिंता क...