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Showing posts from September, 2006

शरत् और दो किशोर

शरत् और दो किशोर जैसे सिर्फ हाथों का इकट्ठा होना समूचा आकाश है फिलहाल दोनों इतने हल्के हैं जैसे शरत् के बादल सुबह हल्की बारिश हुई है ठंडी उमस पत्ते हिलते पानी के छींटे कण कण धूप मद्धिम चल रहे दो किशोर नंगे पैरों के तलवे नर्म दबती घास ताप से काँपती संभावनाएँ उनकी अभी बादल हैं या बादलों के बीच पतंगें इकट्ठे हाथ धूप में कभी हँसते कभी गंभीर एक की आँख चंचल ढूँढ रहीं शरत् के बौखलाए घोड़े दूसरे की आँखों में करुणा जैसे सिर्फ हाथों का इकट्ठा होना समूचा आकाश है उन्हें नहीं पता इस वक्त किसान बीजों के फसल बन चुकने को गीतों में सँवार रहे हैं कामगारों ने भरी हैं ठंडी हवा में हल्की आहें फिलहाल उनके चलते पैर आपस की करीबी भोग रहे हैं पेड़ों के पत्ते हवा के झोंकों के पीछे पड़े हैं शरत् की धूप ले रही है गर्मी उनकी साँसों से आश्वस्त हैं जनप्राणी भले दिनों की आशा में इंतजार में हैं आश्विन के आगामी पागल दिन। (१९९२- पश्यंती १९९५)

रक्षा करो

मोहन राणा के ई-ख़त से पता चला कि मैंने अभी तक भारत लौटने की घोषणा नहीं की है। जून के अंत में ही मैं लौट आया था। दस दिन चंडीगढ़ की गर्मी खाई। उसके बाद से बस यहाँ हैदराबाद में वापस। देश के कानूनों से अभी तक उलझ रहा हूँ। जैसा कि डेपुटी ट्रांस्पोर्ट कमिशनर ने कहा - बी सीटेड, आप प्रोफेसर हैं, आपको कानून का पता होना चाहिए। बखूबी होना चाहिए और मैंने पता किया कि जिस तरह छात्रों को एक प्रांत से दूसरे प्रांत जाने पर माइग्रेशन सर्टिफिकेट नामक फालतू कागज़ हासिल करना पड़ता है, इसी तरह गाड़ियों, स्कूटरों को भी एन ओ सी चाहिए होता है - वह भी सही आर टी ए के नाम - यानी आप नहीं जानते कि हैदराबाद में ट्रांस्पोर्ट अथारिटी हैदराबाद के अलावा अन्य नामों में भी बँटी हुई है तो आप रोएँ। शुकर है अंजान भाई कि तरह डेपुटी ट्रांस्पोर्ट कमिशनर को इस बात पर शर्म नहीं अाई कि मुझ जैसा अज्ञ उनके देश का नागरिक है। वैसे मुझे अच्छी तरह डरा ज़रुर दिया - हमारे इंस्पेक्टर ने गाड़ी चलाते पकड़ लिया तो!!! तो बहुत सारे कागज़ तैयार कर के, चेसिस नंबर तीन तीन बार पेंसिल से घिसके, अपनी घिसती जा रही शक्ल के फोटू कई सारे साथ लगाकर और ...