Skip to main content

Posts

Showing posts from July, 2024

2024

 ('समकालीन जनमत' के ताज़ा अंक में प्रकाशित कविताएँ) 1. 2024 अंकों का जोड़ आठ है जन्मदिन के अंकों को जोड़ कर सोचूँ तो न्यूमेरोलोजिस्ट कहाऊँगा ग़नीमत कि ज़िंदा हूँ क़ैद हूँ अपने खयालों में फिलहाल जोड़ यही बता सकता है आधे साल के आधे के दौरान बचपन का दोस्त याद आया जिसके देवता जैसे नाम से ख़ौफ़ होता है आखिरी दौर में पहाड़ों में छिप गया जहाँ फ़ोन का नेटवर्क नाशाद था आखिर बादल मुझ तक आए और मैं बादलों तक पहुँचा तक़रीबन सत्तर साल की अपनी ग़लतियों का इतिहास सुनाया याद आए मुझ जैसे बूढ़े होते मर्द औरत तय किया कि एक - एक कर सबसे करूँगा प्रेम निवेदन बादलों से सलाह लेते आधा साल बीत गया। कुछ बादल साथ रख लिए मंद स्वर में गीत गाते वे चक्कर लगाते हैं कोई खुशी से बाँसुरी बजाता है कहीं बीच में अड़ी कोई चट्टान झटके से अलग होती है पगडंडियों के दोनों ओर दरख्त झुक आते हैं पत्तियाँ नाचती हैं सब भूलने आया था और सब याद करता रहा हर कहीं हर कुछ जो नया है हर पल वह हर कहीं है क्या सब याद रहना लाज़िम है तयशुदा वक़्फ़ों में बारिश होती है यादों की बारिश हर पल होती है सूरज भोर कभी शाम दिखता है यादों का सूरज हर पल दिखता है कुदरत...

मृत्यु-नाद

('अकार' पत्रिका के ताज़ा अंक में आया आलेख) ' मौत का एक दिन मुअय्यन है / नींद क्यूँ रात भर नहीं आती ' - मिर्ज़ा ग़ालिब ' काल , तुझसे होड़ है मेरी ׃ अपराजित तू— / तुझमें अपराजित मैं वास करूँ। /  इसीलिए तेरे हृदय में समा रहा हूँ ' - शमशेर बहादुर सिंह ; हिन्दी कवि ' मैं जा सकता हूं / जिस किसी सिम्त जा सकता हूं / लेकिन क्यों जाऊं ?’ - शक्ति चट्टोपाध्याय , बांग्ला कवि ' लगता है कि सब ख़त्म हो गया / लगता है कि सूरज छिप गया / दरअसल भोर  हुई है / जब कब्र में क़ैद हो गए  तभी रूह आज़ाद होती है - जलालुद्दीन रूमी हमारी हर सोच जीवन - केंद्रिक है , पर किसी जीव के जन्म लेने पर कवियों - कलाकारों ने जितना सृजन किया है , उससे कहीं ज्यादा काम जीवन के ख़त्म होने पर मिलता है। मृत्यु पर टिप्पणियाँ संस्कृति - सापेक्ष होती हैं , यानी मौत पर हर समाज में औरों से अलग खास नज़रिया होता है। फिर भी इस पर एक स्पष्ट सार्वभौमिक आख्यान है। जीवन की सभी अच्छी बातें तभी होती हैं जब हम जीवित होते हैं। हर जीव का एक दिन मरना तय है , देर - सबेर हम सब को मौत का सामना करना है , और मरने पर हम निष्क्रिय...