अकार पत्रिका के ताज़ा अंक में आई तीन और पुरानी कविताएँ हे पूर्वजो ! संतति बन वापस आओ। धरती का कुछ हिस्सा बचा होगा , वहाँ मिल बैठ कर रोओ। जीने - मरने के बीच अगली पीढ़ियाँ तैयार करो। उनके रुदन के लिए धरती का जरा और छोटा हिस्सा बच्चा रखो। पानी गाढ़ा या पतला बहने दो। हमारे ज़हन बंजर हो चले हैं , तुम्हारे आने तक हरियाली लफ्ज़ पूजा जाएगा। हवा के थपेड़े वीभत्स होंगे। फिर भी तुम प्यार करो। हमें जन्मो कि हम अपना पाप फिर से जिएँ। तुम्हारे साथ करोड़ों साल पहले खत्म हो गए भीमकाय जीव - जंतु होंगे। उनका विकास हो चुका होगा और उनके चेहरों पर धातु के ऐंटीना और लेज़र गन होंगी। तुम उनसे हमें बचाओ। जब वे प्रेम में रोएँ , दूर से हमें दिखाओ। हमें रेंगना सिखाओ कि हम उनकी आँखों से ओझल रहें। पीर में उल्लास रहने दो। हिज्र और हसरत ज़िंदा रखो। चाहत और उम्मीद के गीत गाओ। ईश्वर को बचाए रखो। रातों में तंत्र - मंत्र के खेल देखो और दिखलाओ। खुद ईश्वर बन जाओ। तारों तक पहुँचने के ख्वाब देखो दिखलाओ। हमें समंदर में डुबकियाँ लेने को म...