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Showing posts from January, 2021

तीन कविताएँ 

अकार पत्रिका के ताज़ा अंक में आई तीन और पुरानी कविताएँ  हे पूर्वजो ! संतति बन वापस आओ। धरती का कुछ हिस्सा बचा होगा , वहाँ मिल बैठ कर  रोओ। जीने - मरने के बीच अगली पीढ़ियाँ तैयार करो। उनके रुदन के लिए धरती  का जरा और छोटा हिस्सा बच्चा रखो। पानी गाढ़ा या पतला बहने दो। हमारे ज़हन बंजर हो चले हैं , तुम्हारे आने तक हरियाली लफ्ज़ पूजा जाएगा। हवा  के थपेड़े वीभत्स होंगे। फिर भी तुम प्यार करो। हमें जन्मो कि हम अपना पाप  फिर  से जिएँ। तुम्हारे साथ करोड़ों साल पहले खत्म हो गए भीमकाय जीव - जंतु  होंगे।  उनका विकास हो चुका होगा और उनके चेहरों पर धातु के ऐंटीना और  लेज़र  गन  होंगी। तुम उनसे हमें बचाओ। जब वे प्रेम में रोएँ , दूर से हमें दिखाओ।  हमें रेंगना  सिखाओ कि हम उनकी आँखों से ओझल रहें। पीर में उल्लास रहने दो। हिज्र और हसरत ज़िंदा रखो। चाहत और उम्मीद के गीत  गाओ। ईश्वर को बचाए रखो। रातों में तंत्र - मंत्र के खेल देखो और दिखलाओ। खुद  ईश्वर बन जाओ। तारों तक पहुँचने के ख्वाब देखो दिखलाओ। हमें समंदर में डुबकियाँ लेने को  म...

किस गड्डी में बैठे हो

  मिट्टी चारों तरफ जंगें चल रही हैं और हम तुम प्यार की बातें करते हैं कई हमारी हरकतों से परेशान हैं कहते हैं कि ओए , किस गड्डी में बैठे हो सामने भारत माता की जै तो लिखा नहीं है उन्हें अनदेखा कर हम एक दूसरे पर मिट्टी मल रहे हैं मिट्टी मलते हुए हम धरती को एक दूसरे से साझा कर रहे हैं धरती के आँसू हमारे पसीने में घुल रहे हैं हमें किसी से कुछ नहीं कहना है वे एक दूसरे की हत्या कर शहीद कहलाते हैं हम मिट्टी में कीड़ों से दोस्ती करते हैं जंग का शोर हमें छू नहीं पाता अमेरिका और हिंदुस्तान किसी से लड़ते रहते हैं हम कविताएँ पढ़ते रहते हैं।             (2016;  अकार - 2021) E arth T here are wars going on all around And we are talking love Many are bugged by our manners They say, Hey, what cart are you riding It does not say Glory to Motherland on it We ignore them and paste clay on each other Pasting mud we share the Earth with each other Earth cries its tears into our sweat We have nothing to say to any one They kill each other and are called martyrs We ma...