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Showing posts from June, 2019

कौन देखता है कौन दिखता

चिड़ियाघर किसका घर और किसका क़ैदखाना सोचता खड़ा है भीड़ में क़ैद शख्स ज़हन का कमाल है या हैवानियत इस तरह के सवाल अपने अंदर बसा देते हैं चिड़ियाघर गिरियाता है जिस्म के तिलिस्म में मरियल अफ्रीकी बब्बर शेर नसों में दौड़ती है साइबेरिया के सारस की चीख देर रात जगा हुआ ढूँढता है घासफूस या कि गोश्त यही सच है कायनात के इस कोने में पिंजड़ों में चकराते हैं हम सूरज तारे हमें देखने आते हैं अपने पुच्छल बच्चों के साथ कौन देखता है कौन दिखता है। (पहल - 2019) The Zoo Who is the resident and who the prisoner With such thoughts  We stand arrested by a crowd Is it the brain   Or some animal within  that triggers Such queries in mind The decrepit African lion whines In the magic of the body And in veins flows A cry of the Siberian crane It did not sleep well at night Searching for vegetation or may be remains of a life This is the Truth At this end of the universe We move around cages The sun the stars ...

क्योंकि मैं सुस्त, ज़िद्दी, बेकार हूँ

भाषाओं की मौत कौन पढ़ता है हर मौत कहानी नहीं होती मसलन भाषाओं की मौत कौन पढ़ता है। कोई कहानी मर रही है हर किसी कोने में यह किसी भाषा के मौत की कहानी है। कोई जासूस इन कोनों पर नहीं आता मरती भाषा के सुराग अपने ही अंदर होते हैं भाषा मरती है तो कहानी अपने अंदर मरती है कौन पढ़ता है। (पहल - 2019) Who Cares About Languages Dying Not every death is a story Take languages for instance, who reads their death? At some corner some story is dying  It is the story of a language dying No sleuth comes to such corners The dying language carries the clues within itself When the language dies, the story dies within itself Who reads? भाषाई द्वंद्व और हिन्दी ' अकार '  ( अंक  51;  2018) में प्रकाशित लेख - " निज भाषा उन्नति अहै , सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा - ज्ञान के , मिटत न हिय को सूल।। विविध कला शिक्षा अमित , ज्ञान अनेक प्रकार। सब देसन से लै करहू , भाषा माहि प्रचार।। " - भारतेंदु हरिश्चंद्र 'The limits of my languag...