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Showing posts from October, 2018

ऐसे ही लँगड़ाता रहूँगा

ऐसे ही लँगड़ाते कितनी ज़िंदगी जीते हो साथ - साथ ? किस - किस में मुस्कराते हो और किसमें उजागर करते हो घाव जैसे दाईं टाँग पर जलती सिगरेट का धब्बा किसमें छिपा रखी हैं डरावनी कथाएँ जो रातों को अक्सर सीने पर बैठती हैं नाचने - गाने की अलग - अलग अदाओं में कौन सी है नॉर्मल और कौन सी है  सच के भार से दबी ? समझौते और हताशा छिपे हों या उजागर सब में बरसातें बहेंगी नदी - नाले भर - भर कर सारी की सारी खत्म होंगी एक साथ धरती सबको साथ पालती रही और सबको विदा कहेगी साथ ऐसे ही लँगड़ात ा रह ूँगा एक से दूसरी पर टिकाए बीत चुके पलों का भार । -(पाठ - 2018)

धरती और आस्मां गुजरे हैं हम से

उम्मीद के पैंतालीस मिनट तपती रविवार मई की शाम खोलता हूँ दरवाजे , बरामदे में बाल्टी से पानी छिड़कता हूँ पड़ोस के घरों से लोग बरामदों में आने लगे हैं अकेला मैं पानी छिड़कता हूँ , पड़ोसी आश्वस्त हैं कि वापस ठंडे कमरे में चले जाएँगे आँखों पर ऐनक कभी ठीक देखने नहीं देती उम्र है या वक्त है , कहना है मुश्किल हर तरफ धुँधला सब कुछ मन सशंक कि यह महज चेतावनी है मध्यवर्गी इस रिहाइश में सब कुछ शांत है शोर है तो पार्क में खेलते बच्चों का है उल्लास में सराबोर माँ - बाप बरामदों में दिखते निश्चिंत कि सब कुछ ठीक है बच्चों को देख धड़कता है दिल एकबारगी भूल जाता हूँ वक्त और खो देता हूँ खुद को एक बार खुद बच्चा बन जाता हूँ यहाँ सोहनपापड़ी बेचने कोई बूढ़ा नहीं आता कोई भेल - मूड़ी बेचने नहीं आता सिक्योरिटी के लोग उनके लिए नहीं हैं वे इस ओर भटकते ही नहीं बड़ी सड़क से कहीं और चले जाते हैं ज़मीं और इंसान इस तरह बँटे हैं पंछी ढलती शाम यहाँ ...

निश्छल एहसासों की याद

तक्नोलोजी के साथ बूढ़े हुए हैं हम वह ज़माना याद है ? जब साल में किसी खास मौके पर फोटो खिंचवाते थे अव्वल तो बेवजह खिंचवाते ही न थे कहीं कोई दरखास्त भरनी होती थी , किसी इम्तहान का ऐडमिट कार्ड या कॉलेज में भर्ती जैसा कुछ होता था या जब पहली बार ड्राइविंग लाइसेेस बनाना था स्टूडियो में फोटोग्राफर सलीके से बैठाकर कभी कॉलर और कभी बाल ठीक  करता था सतरह साल की उम्र के फोटो में ऊटी में होटल मालिक की नन्ही बच्ची को कंधे  पर बिठाया था क्लास के किसी लड़के ने खींचा था उस कोट में जो दोस्त से उधार लिया पहना  था तक्नोलोजी के साथ - साथ बूढ़े हुए हैं हम पुरानी तस्वीरों में देखता हूँ अपनी झेंपती शक्ल यू - ट्यूब पर गुलाम अली को चुपके - चुपके वाला जमाना याद है गाते सुनता हूँ वह बच्ची अब कहाँ पैंतालीस की उम्र का परिवार सँभाल रही होगी अब तो अपनी बेटी भी बड़ी हो गई है निश्छल एहसासों की याद सुकून देती है जब चारों ओर कुछ भी निश्छल नहीं रहा लगता है हर पल सेल्फी जिए जा ...

परमाणु में भूत है

इसलिए जोर से मत कहना परमाणु में भूत है इस बात को जोर से मत कहना क्या पता प्रधान मंत्री ढूँढ निकालें वैशेषिक से कोई स्त्रोत कि हमारे पुरखों को यह पता था पुरखों को हर बात पता थी यह भी कि कभी ऐसा राज आएगा कि कौआ मोती खाएगा उनको यह तो ज़रूर पता था कि भूत या भविष्य दोनों वर्तमान से ही बनते हैं भविष्य में जीते हुए हम भूत के अणुओं को यादृच्छ आकार देते हैं वाकई परमाणु में भूत है अब भाषा की वह औकात रही नहीं कि इससे अधिक कह सके ग़रीब हो भाषा तो ग़रीब होता है उसे जीने वाला एक ही कायनात में सफर पूरा नहीं कर पाता तो और कायनातों की क्या सोचे भूत दौड़ता रहता है कायनात - दर - कायनात प्यार और नफ़रत के खेल खेलता हर मुल्क में कभी बुद्ध और कभी मिहिरकुल बाँटता इसलिए जोर से मत कहना कि परमाणु में भूत है। - ( पाठ - 2018) So Do Not Speak Aloud There is a ghost in the ...

कुछ है कि

समझ नहीं आता मुझे भेटकी फ्राई और सालन के साथ रोहू पसंद हैं अंग्रेज़ी टाइप के फिश फिले या चीनी झींगा स्प्रिंग रोल पसंद हैं पर हर दिन मछली खाऊँ , ऐसा नहीं हूँ मीठा ज़रूरत से ज्यादा ले लेता हूँ आलू अंडे या पकौड़े और मूढ़ी कभी भी खा सकता हूँ पर दोनों वक्त चावल ही खाऊँ , ऐसा नहीं हूँ रवींद्रसंगीत और जन - गीत दोनों सुनता हूँ अदब का शौक जन्मजात है कथा - उपन्यास खूब पढ़ता हूँ पर घर - परिवार से उकता जाऊँ , ऐसा नहीं हूँ मैं तो ऐसा ही हूँ , जैसा हूँ आम डरपोक - सा पढ़ा - लिखा इंकलाब के ख़्वाब देखता दायरों में बँधा - सिमटा हुआ चुनिंदा अल्फाज़ लिए खेलता कविता करता पर कुछ है कि तुम्हें इतना चाहता हूँ और यही काफी है कि भूल जाऊँ बाक़ी सब कुछ जो पसंद है और शामिल हो जाऊँ ख़्वाब को सच में बदलने की लड़ाई में।   - पाठ (2018)