' आस्था ' पर फेसबुक पर गौहर रज़ा के एक पोस्ट को ज्योति थानवी ने शेयर किया तो मुझे अपना एक व्याख्यान याद आया जो मैंने पंजाब विश्वविद्यालय के सांध्यकालीन अध्ययन विभाग (Evening studies) के एक कॉन्फरेंस में दिया था। इसके लिए लंबा abstract तैयार किया था , जो संयोग से मेरे पास है। वैसे मेरा एक अंग्रेज़ी ब्लॉग भी है , पर उस पर पोस्ट किए साल गुज़र गए , इसलिए यहीं डाल रहा हूँ। जब मैंने यह भाषण दिया था , विज्ञान के दर्शन पर मेरी पढ़ाई शून्य के बराबर थी। बेहतरीन वैज्ञानिकों के साथ काम करने का अनुभव मात्र था। आज दुबारा पढ़कर यह बड़ा अपरिपक्व सा लगता है , फिर लिखना हो तो मेरी भाषा बिल्कुल अलग होगी। पर मूल सवाल और चिंताएँ कोई खास बदली नहीं हैं। मैं अब भी यही मानता हूँ कि हमारे अंग्रेज़ी वाले उदारवादी बंधु पश्चिमी भागम - दौड़ में शामिल होने की जल्दी में अपनी ज़मीनी सचाइयों से अलग सैद्धांतिक समझौते करते रहते हैं। Reading a post of Gauhar Raza on Facebook shared b...