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Showing posts from June, 2018

आस्था के सवाल पर बीस साल पुराना एक abstract

' आस्था ' पर फेसबुक पर गौहर रज़ा के एक पोस्ट को ज्योति थानवी ने शेयर किया तो मुझे अपना एक व्याख्यान याद आया जो मैंने पंजाब विश्वविद्यालय के  सांध्यकालीन अध्ययन विभाग (Evening studies) के एक कॉन्फरेंस में  दिया था। इसके लिए लंबा abstract तैयार किया था , जो संयोग से मेरे पास है। वैसे मेरा एक अंग्रेज़ी ब्लॉग भी है , पर उस पर पोस्ट किए साल गुज़र गए   ,   इसलिए यहीं डाल रहा हूँ। जब मैंने यह भाषण दिया था , विज्ञान के दर्शन पर  मेरी पढ़ाई शून्य के बराबर थी। बेहतरीन वैज्ञानिकों के साथ काम करने का अनुभव मात्र था। आज दुबारा पढ़कर यह बड़ा अपरिपक्व सा लगता है , फिर  लिखना हो तो मेरी भाषा बिल्कुल अलग होगी। पर मूल सवाल और चिंताएँ  कोई  खास बदली नहीं हैं। मैं अब भी यही मानता हूँ कि हमारे अंग्रेज़ी वाले उदारवादी बंधु पश्चिमी भागम - दौड़ में शामिल होने की जल्दी में अपनी  ज़मीनी सचाइयों  से अलग सैद्धांतिक समझौते करते रहते हैं। Reading a post of Gauhar Raza on Facebook shared b...

इसी के लिए एकजुट होना है

झूठ , और झूठ – खतरा और भी है (यह लेख कर्नाटक राज्य में हुए चुनावों के परिणाम आने के पहले लिखा था। 'उद्भावना' पत्रिका के ताज़ा अंक में इसके आने की उम्मीद है) कर्नाटक के चुनाव हो गए। आगे और चुनाव आने वाले हैं। अगले साल की शुरूआत में संसद के चुनाव होने हैं। यह भी कहा जा रहा है कि सरकार इसी साल के आखिर में ही संसद के चुनाव करवा सकती है। एक जमाना था जब चुनाव उत्सव की तरह आते थे। पार्टी समर्थकों के पीछे छोटे बच्चे उछलते कूदले चलते थे। तुतलाती आवाज़ में नारे देते थे। फिर पता नहीं कब जैसे माहौल में ज़हर घुल गया। जगह - जगह से चुनावी प्रचार के दौरान हिंसा की खबरें आने लगीं। पहले प्रचार में प्रार्थी झूठे वादे किया करते थे। अब विरोधियों पर झूठ के हमले होने लगे। झूठ राजनीति का औजार है। कोई औजार जब ज़रूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया जाए तो उसकी धार कम हो जाती है। औजार थोथा पड़ने लगता है। आखिर में वार उल्टे पड़ने लगते हैं। भारतीय झूठ पार्टी का इन दिनों यह हाल है। राजनेता दम लगाकर कहता है - विरोधियों के झूठ का पर्दाफाश करो। लोग समझ जाते हैं कि विरोधी इस वक्त सच बोल रहे हैं। कई ...