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Showing posts from January, 2018

लोग बर्फ बन गए हैं

'कादंबिनी' के ताज़ा अंक में प्रकाशित कविताएँ -  इनको मैंने हैदराबाद लिट फेस्ट में भी पढ़ा था। A quick translation follows after the Hindi original. सपनों में बर्फ होती धरती 1 चारों ओर लोग ठोस बर्फ बन गए हैं सूरज उन पर बरसते थक गया है और वे पिघलते नहीं हैं सूरज पास आकर उनसे टकराता है और मैं सोचता हूँ कि पिघल ही जाएँगे कि रोशनी उनके आरपार होगी तो वे यह सोच कर रोएँगे कि वे जिस जंग में शामिल हैं उसकी आग से धरती की सतह पर छायादार खयाल जल गए हैं सूरज थक गया है कि वह छाया ओढ़ कर कहीं सो नहीं पाता सूरज ने कई जंगें देखी हैं उसे पता है कि हर जंग से पहले और कई जंगें होती हैं कि कहाँ शुरु कहाँ खत्म इस हिसाब में दुनिया भर में माँएँ रोती हैं चाहता हूँ कि लोग माँ के आँसू देखें लोगों की नज़र बर्फ बन गई है। 2 मेरे पास से बर्फ बन चुका एक आदमी गुजर गया मुझे लगा कि वह पिघले तो मुझे ठंडा पानी पाने को मिलेगा उसके पास बैठूँ तो मुझपर छाया उतर आएगी मैं सोच रहा था कि वह बैठने देगा या नहीं देगा कि उसने एक साथ अल्लाह ओ अकबर और जै...