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Showing posts from July, 2017

कौन मेरे अंदर लगातार अट्टहास करता है

चुपचाप अट्टहास -37 लोग मुझे देखते हैं और पास से गुजर जाते हैं छूना तक नहीं चाहते मुझे देर तक देखना नहीं चाहते आँखें दूर कर लेते हैं मुझे देखते ही उनके अंदर आग - सी धधकने लगती है वे खुद से ही घबराने लगते हैं उन्हें मेरी कोई जरूरत नहीं है मुझे मेरी अपनी जरूरत है क्या यह जो आग उनमें धधकती दिखती है मेरे अंदर तो नहीं धधक रही लोग ऐसे ही आएँगे गुजरते जाएंगे जाने कितने आस्मां खुलते हैं मैं उनमें से किसी एक को भी छू नहीं सकता कौन मेरे अंदर लगातार अट्टहास करता रहता है कौन मेरे अंदर जाने कितने प्रलयंकर अंधड़ बन आता है कौन मेरे अंदर धूमकेतु - सा हो उड़ता है कौन मेरे अंदर अनबुझ ज्वालामुखी बन फैलता है। People look at me And they walk by They do not want to look at me for a long while They take their eyes away They look at me And they feel a fire within T...

चुपचाप अट्टहास - 36: देश मेरे दिमाग में कुलबुलाता है

अब क्या सीखूँ दिमाग भर चुका है एक आदर्श की अनंत प्रतियों से कि मैंने इस धरती को अँधेरे धुँए में बदल देना है दिमाग में लाशें भरी हैं मन में जो संगीत गूँजता है वह भूखे सताए लोगों की चीखें हैं नंगे-अधनंगे गश्त करते हैं मेरे दिमाग की धमनियों में चीखते हुए राष्ट्रगीत। उनके जिस्मों पर से कीड़े-मकौड़े, साँप-बिच्छू गुजरते हैं मेरा दिमाग कीटों की बिष्ठाओं से भर गया है गर्भपात से गिरे भ्रूण ज़हन में किलबिलाते हैं पूरा देश मेरे दिमाग में कुलबुलाता है सीने के आरपार जाती किरणें मेरी अपनी छवि दिखलाती हैं अंतर्मन में हड्डियों पर हमलावर लिंग लटकाए दिखता हूँ चेहरा सूखे बालों से भरा होता है अब क्या सीखूँ इंसानियत के कत्ल की इंतहा दिखती मुझे अपनी तस्वीर में। What can I possibly learn now My mind is filled With innumerable replicas of an ideal That I must transform this planet into a dark smoke pit. My mind is filled with the dead I hear music Of the starving downtrodden They march naked in the veins in my brains Howling the National anthem. Insects, snakes and scorpions, crawl on their bodies My brain is ...