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कौन मेरे अंदर लगातार अट्टहास करता है


चुपचाप अट्टहास -37


लोग मुझे देखते हैं

और पास से गुजर जाते हैं

छूना तक नहीं चाहते

मुझे देर तक देखना नहीं चाहते


आँखें दूर कर लेते हैं




मुझे देखते ही उनके अंदर

आग-सी धधकने लगती है

वे खुद से ही घबराने लगते हैं

उन्हें मेरी कोई जरूरत नहीं है



मुझे मेरी अपनी जरूरत है क्या

यह जो आग उनमें धधकती दिखती है

मेरे अंदर तो नहीं धधक रही



लोग ऐसे ही आएँगे गुजरते जाएंगे

जाने कितने आस्मां खुलते हैं

मैं उनमें से किसी एक को भी छू नहीं सकता



कौन मेरे अंदर लगातार अट्टहास करता रहता है

कौन मेरे अंदर जाने कितने प्रलयंकर अंधड़ बन आता है

कौन मेरे अंदर धूमकेतु-सा हो उड़ता है

कौन मेरे अंदर अनबुझ ज्वालामुखी बन फैलता है।


People look at me

And they walk by

They do not want to look at me for a long while

They take their eyes away



They look at me

And they feel a fire within

They get scared of themselves

They do not need me



Do I need myself

This fire that appears within them

Could it be burning within me



People will come and go

And there are skies that open out

I cannot touch even one of then



Who within me laughs aloud all the time

Who within me comes as a tornado again and again

Who within me flies like a comet

Who within me explodes like a volcano.

Comments

waah bahut khoob behtareen rachna
सच, कौन है वह जितनी अधिक कोशिश होती उसे जानने की उतनी ही अधिक व्यग्रता बढ़ती जाती है| न हम स्वयम को जान-समझ पाते हैं और न ही तो उसे जो लगातार हममें प्रवेश कर के हमें ही चुनौती देता रहता है| बहुत सुन्दर कविता! शुभकामनाएँ

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