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Showing posts from May, 2017

चुपचाप अट्टहास - 32 : सुनो मेरी फुफकार

  हर मुँह से हिस्स हिस्स कितने मुँह मेरे दो कि चार कि अनगिनत पथरीली राहें मुझे घेरतीं मुझे उछालतीं गगनचुंबी लहरें समंदरों की बँधा मैं अँधेरी रातों से हर मुँह से हिस्स हिस्स ज़हर फेंकता। बरछे भाले तोप कमान कोई मेरे लगातार बढ़ते ज़हरीले मुखों को छेद नहीं सकता मैं काल का काला बादल सुनो मेरी फुफकार अँधेरे में मेरी लपलपाती जीभ तुम्हें दिखती होगी जैसे मोहिनी नायिका जाती अभिसार को। Many mouths I have Is it two or four or countless Rocky roads are all around me High tidal waves from the seas throw me upwards I am bound to darkness Hissing venom spits From each of my mouths. No spears or cannon balls Can pierce my ever spreading venomous mouths I am the dark cloud of Kala, the terror eternal, Hear me erupt. You can see my tongue Brandishing in darkness Like a courtesan going t...

चुपचाप अट्टहास - 31

' हँसो , हँसो , जल्दी हँसो। ' क्या अन्न रह सकता है अनछुआ फल अनपका दौड़ रहा धमनियों में जो रक्त उसकी भी चाहत मज्जाएं जो खाई जातीं और जो मज्जाओं के पाचन पर बनतीं कायनात भर में चाहत के समीकरण हैं जिस्म के रहस्यों से परे उफ़्क के कोनों तक दौड़ रही हैं चाहतें मैंने समेट ली धरती के हर दरिया की चाहत गंगा के बहाव में गंगा की मैल कैसे साफ होगी एक बार याद करें कवि को - ' हँसो , हँसो , जल्दी हँसो। ' Can a grain be left untouched? And a fruit unripened? Even the blood running in the veins Desires Marrow that is eaten and that is made with marrow  digested Desires prevail in equations of all the universe From the mysteries of the body to the ends of the  horizons Desires racing I gathered within me the desires of all rivers on the  Earth With Ganga flowing How will...