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चुपचाप अट्टहास - 31




'हँसो, हँसो, जल्दी हँसो।'


क्या अन्न रह सकता है अनछुआ


फल अनपका


दौड़ रहा धमनियों में जो रक्त


उसकी भी चाहत


मज्जाएं जो खाई जातीं और जो मज्जाओं के पाचन पर बनतीं


कायनात भर में चाहत के समीकरण हैं


जिस्म के रहस्यों से परे उफ़्क के कोनों तक


दौड़ रही हैं चाहतें





मैंने समेट ली धरती के हर दरिया की चाहत


गंगा के बहाव में


गंगा की मैल कैसे साफ होगी



एक बार याद करें कवि को -


'हँसो, हँसो, जल्दी हँसो।'





Can a grain be left untouched?


And a fruit unripened?


Even the blood running in the veins


Desires


Marrow that is eaten and that is made with marrow 
digested


Desires prevail in equations of all the universe


From the mysteries of the body to the ends of the 
horizons


Desires racing





I gathered within me the desires of all rivers on the 
Earth


With Ganga flowing


How will Ganga ever be cleansed





Remember the poet for once


Laugh, laugh and laugh right now!”

(The quote is from a poem by Raghuveer Sahay)

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