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Showing posts from October, 2016

हम सब हाकिमे-वक्त का हुक्म बजा लाते हैं

'उद्भावना' के ताज़ा भीष्म साहनी स्मृति विशेषांक में प्रकाशित -  भीष्म साहनी का उपन्यास ' मय्यादास की माड़ी ' - इतिहास '… न कोई नमकहलाल होता है , न नमकहराम। हम सब हाकिमे - वक्त का हुक्म बजा लाते हैं , सदा से ऐसा ही चलता आया है। ' ' मय्यादास की माड़ी ' एक ऐतिहासिक उपन्यास है। भीष्म साहनी का जन्म पंजाब के ऐसे इलाके में हुआ था जहाँ पिछली कई सदियों से लगातार तख्तापलट होता रहा है और आज भी लगभग यही माहौल है। ऐसे इलाके में शहरी अभिजात खानदान में पलने से उन्हें हाल की सदियों के इतिहास की जानकारी होनी स्वाभाविक थी। उनके पिता कपड़ों के खानदानी व्यापारी थे। बाद में लाहौर में कॉलेज की तालीम के दौरान भी इतिहास का गहन अध्ययन उन्होंने किया ही होगा। साथ ही परिवार में बुज़ुर्गों से सुनी कहानियों से उनको इतिहास की अच्छी समझ मिली होगी। उनका जन्म 1915 में हुआ था और उन्होंने अपने पिता और दादा की पीढ़ी से उन्नीसवीं सदी में पंजाब में हुई उथल - पुथल के बारे में बहुत कुछ सुन रखा होगा। उनकी पीढ़ी के लेखकों पर हिंदी में प्रेमचंद और विश्व - साहित्य में तॉल्सतॉय ज...

उच्च शिक्षा में एक और छलावा

हाल में राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित आलेख -     उच्च शिक्षा में एक और छलावा देश के हर बच्चे में यह चाह है वह ऊँची तालीम तक पहुँच पाए और स्तरीय शिक्षा प्राप्त कर सके। प्राथमिक स्तर पर स्कूल में भर्ती होने वाले बच्चों में से एक तिहाई भी आज उच्च - शिक्षा तक नहीं पहुंच पाते हैं। जो पहुँच पाते हैं उनके लिए अलग - अलग स्तर की शिक्षा मुहैया करवाई जा रही है। भारत जैसे ग़रीब मुल्क में सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि हर नागरिक को समान और श्रेष्ठ स्तर की उच्च - शिक्षा पाने में मदद करे और उसके लिए संसाधन जुटाए। हर कोई जानता है कि संविधान के निर्देश मुताबिक पहली शिक्षा नीति में यह तय किया गया था कि सकल घरेलू उत्पाद का 6% शिक्षा के मद में लगाया जाए। यह लक्ष्य आज तक पूरा नहीं हो पाया है और वक्त के साथ घाटा बढ़ता ही रहा है। कई दशकों से सरकारी बजट का 10-11% ही तालीम के लिए तय रहा है , जबकि दमन तंत्र और सुरक्षा के नाम पर जितना उजागर है , वह भी 20% से ऊपर रहा है। हाल में सरकार ने उच्च शिक्षा के लिए जो निधि बनाने की घोषणा की है जिसे HEFA ( हेफा ) या उच्च शिक्षा वित्तपोष...