कुछ लोगों से आत्मीय संबंध उनसे मिलने से पहले ही बन जाता है। प्रफुल्ल बिदवई से मेरा संबंध कुछ ऐसा ही रहा। मैं उनसे दो बार ही मिला और सचमुच कोई ऐसी बातचीत नहीं हुई कि अंतरंगता का दावा कर सकूँ। पर मन में उनके लिए आत्मीय संबंध बढ़ता रहा। मैंने उन्हीं के लेखन में सबसे पहले नरेंद्र मोदी के नाम को नरेंद्र मिलेसोविच मोदी लिखा देखा था और मैंने भी कहीं इसका बकौल प्रफुल्ल कहते हुए इस्तेमाल किया है। शायद 2004 की अप्रैल की बात है , जब मैं पहली बार उनसे मिला। जानते तो पहले से ही थे। पुष्पा भार्गवा ने अपनी विज्ञान और समाज नामक संस्था के मंच से विज्ञान और नैतिकता पर एक सम्मेलन आयोजित किया था। मैं चंडीगढ़ से इसमें भाग लेने आया था। प्रतिभागियों में कुछ नामी - गरामी वैज्ञानिक थे। नार्लीकर पुणे से आए थे। नार्लीकर ने अपने भाषण में आरक्षण के खिलाफ बोलना शुरू किया। हिंदुस्तान के वैज्ञानिकों की यह खासियत है। अपने क्षेत्र में कुछ परचे छाप कर प्रतिष्ठित होते ही उन्हें लगता है कि वे...