Skip to main content

Posts

Showing posts from June, 2015

अपना कुछ चला गया

कुछ लोगों से आत्मीय संबंध उनसे मिलने से पहले ही बन जाता है। प्रफुल्ल  बिदवई से मेरा संबंध कुछ ऐसा ही रहा। मैं उनसे दो बार ही मिला और सचमुच  कोई ऐसी बातचीत नहीं हुई कि अंतरंगता का दावा कर सकूँ। पर मन में उनके  लिए आत्मीय संबंध बढ़ता रहा। मैंने उन्हीं के लेखन में सबसे पहले नरेंद्र मोदी  के नाम को नरेंद्र मिलेसोविच मोदी लिखा देखा था और मैंने भी कहीं इसका  बकौल प्रफुल्ल कहते हुए इस्तेमाल किया है। शायद 2004 की अप्रैल की बात  है , जब मैं पहली बार उनसे मिला। जानते तो पहले से ही थे। पुष्पा भार्गवा ने  अपनी विज्ञान और समाज नामक संस्था के मंच से विज्ञान और नैतिकता पर  एक सम्मेलन आयोजित किया था। मैं चंडीगढ़ से इसमें भाग लेने आया था।  प्रतिभागियों में कुछ नामी - गरामी वैज्ञानिक थे। नार्लीकर पुणे से आए थे।  नार्लीकर ने अपने भाषण में आरक्षण के खिलाफ बोलना शुरू किया। हिंदुस्तान  के वैज्ञानिकों की यह खासियत है। अपने क्षेत्र में कुछ परचे छाप कर प्रतिष्ठित  होते ही उन्हें लगता है कि वे...

शांति के पक्ष में

आज जनसत्ता में -  (पहला पैरा बाद में जोड़ा है) दुश्मनी नहीं , दोस्ती में ही हित है प्रधान मंत्री बांग्लादेश के दौरे पर गए , साथ में भारतीय राजनीति में उनकी फिर से मित्र बनी पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी गईं। दशकों से चले आ रहे छिटपुट सीमा विवाद खत्म हुए। किसी ने इस पर ना नुकुर नहीं कि किस को फायदा और किसको नुकसान हुआ। पिछली आधी सदी से भी अधिक समय से जो माहौल रहा है , वैसे लगता तो यही था कि दक्षिण एशिया में ऐसा संभव नहीं है कि शांति से विवाद निपटाएँ जाएँ , पर यह हुआ। यह अच्छी शुरूआत है। क्या आपने कभी भारत - चीन विवाद पर चीन का पक्ष जानने की कोशिश की है ? पाकिस्तान आखिर क्या कहता है - क्यों उसे भारत से लड़ना है। ऐसा सवाल सुनकर कई लोगों को हँसी आएगी। पाकिस्तान जैसा देश – पिछड़ा हुआ , मुसलमान देश – उसका भी क्या पक्ष होगा। चीन तो खुराफाती है ही , हर किसी के साथ पंगे लेता रहता है - लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश से हमारी सैंकड़ों एकड़ ज़मीनें छीन लीं , उसका पक्ष क्या ? कल्पना करें कि आप चीन या पाकिस्तान के नागरिक हों तो ऐसा ही आप भारत के बारे मे...