अकबर रिज़वी के फेसबुक पोस्ट - ' * एक मार्क्सवादी मित्र से बातचीत के दौरान नया ज्ञान मिला। उनके मुताबिक - # संस्कृत ही संस्कृति है। ( और एक हम बुरबक अब तक संस्कृत को भाषा और संस्कृति को कुछ और समझ रहे थे। पता नहीं कब तक अज्ञानता का शूल मेरे जीवन को चुभता रहेगा ! उफ्फ ! हाय रे क़िस्मत मूर्ख परिवार में जन्म लेकर क्या मिला मुझे ... )' पर मेरी प्रतिक्रियाः बेचारे मित्र ! अभी तो असली संस्कृति तो अंग्रेज़ी है। अनुस्वार है , कवर्ग का एक अक्षर है और ज और त में एक ही वर्ग का फर्क है। यूरोपकेंद्रिक चिंतन के खिलाफ भी बोलना हो तो अंग्रेज़ी में कहने पर ही लोगों को सुनाई पड़ता है। सूरज पूरब में उगता है कोपरनिकस ने कहा। इंसान इंसान है किसने कहा - शायद बर्ट्रेंड रसेल ने। आगे देखो , संस्कृत - काल दौड़ता आ रहा है। पर संस्कृत भी अंग्रेज़ी की गाड़ी पर ही सवार रहेगी। किसी को यह कहने के लिए मैंने लताड़ा था ( अंग्रेज़ी में - लताड़़ अनसुनी रह जाती अगर भारतीय भाषा में होती ) कि इंसान का दिमाग एक ऑपरेटिंग सिस्टम है और इसलिए हर बच्चे को पहली से संस्कृत पढ़ाना होगा - तो अब मैं तैयार हूँ क...