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Showing posts from November, 2012

प्रकृति-प्रेरित ऊर्जा के वैकल्पित स्रोत

हमारे समय में ऊर्जा का संकट एक बड़ा संकट है। औद्योगिक क्रांति के पहले जंगल से काट कर लाई गई लकड़ी ही ऊर्जा का मुख्य स्रोत थी। औद्योगिक क्रांति ने बड़े पैमाने पर कोयला और खनिज तेल की खपत बढ़ाई। कोयला और खनिज तेल का उत्पादन क्षेत्र और इनकी खपत के क्षेत्र में भौगोलिक दूरी से पूँजीवादी विकास सीमित रह गया होता , पर बिजली के आविष्कार और संचय में तरक्की से विकास और ऊर्जा की खपत धरती के हर क्षेत्र में फैला और ऊर्जा की खपत तेज़ी से बढ़ी। पूँजीवादी अर्थ - व्यवस्था द्रुत औद्योगिक प्रगति की माँग करती है। इसके लिए , खास तौर पर मैनुफैक्चरिंग सेक्टर यानी उत्पादन क्षेत्र को अधिकाधिक ऊर्जा चाहिए। साथ ही मध्य - वर्ग के लोगों की बदलती जीवन शैली और इस वर्ग में बढ़ती जनसंख्या से ऊर्जा की खपत तेज रफ्तार से बढ़ती चली है। बड़े पैमाने में ऊर्जा की पैदावार के लिए कोई भी सुरक्षित तरीका नहीं है। कूडानकूलम संयंत्र के खिलाफ जो जन - संघर्ष चल रहा है और हाल में जापान और फ्रांस की सरकारों ने अगले दो तीन दशकों में ही नाभिकीय ऊर्जा पर निर्भरता से मुक्ति का जो ऐलान किया है , इससे यह तो सबको पता चल ही गया है कि तमाम दावो...