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Showing posts from September, 2012

धार्मिक आस्था के जैविक स्रोतः संज्ञानात्मक खोज

 ('समकालीन जनमत' के अगस्त 2012 अंक में प्रकाशित) ( इस आलेख का अधिकांश ' नेचर ' पत्रिका के 23 अक्तूबर 2008 के अंक में प्रकाशित पास्काल बोयर के आलेख पर आधारित है ) पिछले सौ वर्षों से लगातार कहा जाता रहा है कि यह विज्ञान का युग है। यह भी अक्सर कहा जाता है कि विज्ञान ईश्वर के अस्तित्व का विरोध करता है। यह एक तरह की विड़ंबना ही है कि विज्ञान के विकास के साथ ही धार्मिक संस्थाओं की भी अभूतपूर्व बढ़त दिखती है। आखिर ईश्वर में विश्वास जनमता कैसे है। क्या यह महज सामाजिक पृष्ठभूमि से मिला आग्रह है या इसके कोई और बुनियादी कारण हैं ? मसलन क्या यह जैविक विकास के साथ विकसित हुआ है ? किसी और प्राणी में आस्तिक विचार नहीं दिखते। तो संभव है कि मानव की आस्था का उद्गम जैविक कारणों में हो। ऐसा विचार अलग अलग लोगों में अलग अलग किस्म की प्रतिक्रियाएँ पैदा करता है। आस्था वाले लोगों को खतरा महसूस होता है कि आस्था की वैज्ञानिक समझ से आस्था की दूकान ढह जाएगी। औरों को लगता है कि इससे आस्था विज्ञान - ...