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Showing posts from April, 2012

थोड़ा सा चाँद, थोड़ी सी गप्प

पिछले वर्ष हिंदी के जिन बड़े कवियों की जन्म शताब्दी मनाई गई, उनमें से सिर्फ नागार्जुन से मैं दो बार मिला हूँ। पढ़ा थोड़ा बहुत सभी को है, पर इतना नहीं कि कुछ कह-लिख पाऊँ। वैसे भी साहित्य से औपचारिक रूप से न जुड़े होने से इतना समय भी नहीं रहता कि शोध की दृष्टि से साहित्य का अध्ययन कर पाऊँ। बहरहाल, हैदराबाद विश्वविद्यालय ने पिछले साल जब इन कवियों की जन्म शताब्दी पर समारोह किया, तो मुझे भी कुछ कहना था। ज्यादा गंभीर कृतियों से बचते हुए शमशेर की बच्चों के लिए लिखी कविता पर मैंने जो कुछ कहा, उसे बाद में कोशिश कर लिख डाला था। अभी चार दिन पहले उद्भावना का शमशेर स्मृति अंक आया तो यह आलेख मेरे ध्यान में आया।अगर इसमें कोई काम की बात है, तो संदर्भ देते हुए कोई भी इसका इस्तेमाल कर सकता है। (20 Oct 2014: इस पोस्ट के बाद आलेख ' उद्भावना ' और ' साखी ' - दो पत्रिकाओं में प्रकाशित हो गया था ) --> थोड़ा सा चाँद , थोड़ी सी गप्प   ( अक्तूबर 2011 में हिंदी विभाग , हैदराबाद विश्वविद्यालय में पढ़ा प्रपत्र ) शमशेर बहादुर सिंह के शब्द...

आशिकी में नीली बैंगनी हो चुकी राहें, कविता और क्रांति

एड्रिएन रिच का चले जाना एक युग का अंत है। मैंने बहुत ज्यादा तो नहीं पढ़ा, पर जितना पढ़ा, उससे वे मेरी प्रिय कवि बन गईं। सत्ताईस साल पहले विदेश से लौटते हुए उनकी कविताओं की एक मोटी किताब ले आया था। उन दिनों यहाँ उनको कोई जानता न था। एक बंदे ने किताब ली और बहुत बाद में उसे लौटाने को कहा तो पता चला कि उसने वह किताब कहीं सड़क से ली थी। बाद में एक उनके वैचारिक आलेखों की एक किताब रह गई थी। कभी कभार पढ़ता, फिर वह किताब भी बेटी अपने साथ ले गई। इसलिए इधर कई सालों से उनको पढ़ा न था। उनकी एक कविता का अनुवाद करने की कोशिश कर रहा हूँः ड्रीमवुड (सपनकाठ) टाइपिंग स्टैंड की पुरानी, सस्ती, खुरदरी लकड़ी में एक ज़मीं का विस्तार है जिसे केवल एक बच्चा या बच्चे की बढ़ी उम्र की छवि, एक कवि, सपना देखती एक स्त्री, देखती है, जब कि उसे दिन की आखिरी रीपोर्ट टाइप करनी चाहिए। अगर यह एक नक्शा होता, जिसे कि उसे लगता है कि सफर के लिए याद रखना है, तो इसमें धुँधले रगिस्तानों में विलीन होते ढालू टीले दर टीले, कभी कभार कहीं हरीतिमा और कदाचित कोई छोटा पोखर दिखते। अगर यह एक नक्शा होता, तो यह उसके जीवन के आख...