पिछले वर्ष हिंदी के जिन बड़े कवियों की जन्म शताब्दी मनाई गई, उनमें से सिर्फ नागार्जुन से मैं दो बार मिला हूँ। पढ़ा थोड़ा बहुत सभी को है, पर इतना नहीं कि कुछ कह-लिख पाऊँ। वैसे भी साहित्य से औपचारिक रूप से न जुड़े होने से इतना समय भी नहीं रहता कि शोध की दृष्टि से साहित्य का अध्ययन कर पाऊँ। बहरहाल, हैदराबाद विश्वविद्यालय ने पिछले साल जब इन कवियों की जन्म शताब्दी पर समारोह किया, तो मुझे भी कुछ कहना था। ज्यादा गंभीर कृतियों से बचते हुए शमशेर की बच्चों के लिए लिखी कविता पर मैंने जो कुछ कहा, उसे बाद में कोशिश कर लिख डाला था। अभी चार दिन पहले उद्भावना का शमशेर स्मृति अंक आया तो यह आलेख मेरे ध्यान में आया।अगर इसमें कोई काम की बात है, तो संदर्भ देते हुए कोई भी इसका इस्तेमाल कर सकता है। (20 Oct 2014: इस पोस्ट के बाद आलेख ' उद्भावना ' और ' साखी ' - दो पत्रिकाओं में प्रकाशित हो गया था ) --> थोड़ा सा चाँद , थोड़ी सी गप्प ( अक्तूबर 2011 में हिंदी विभाग , हैदराबाद विश्वविद्यालय में पढ़ा प्रपत्र ) शमशेर बहादुर सिंह के शब्द...