एक मित्र ने बतलाया कि बंगाली बिरादरी रात को बारह बजे कहीं पूजा के लिए जाने की सोच रही है। काली पूजा है रात को होती है। मैंने कहा कि मैं पूजा आदि में रूचि नहीं रखता। मुझे लगता है कि पूजा का हुल्लड़ बच्चों के लिए बढ़िया या फिर आप धार्मिक प्रवृत्ति के हों। मेरा तो मानना है कि कोलकाता में कानून बनाना चाहिए कि एक वर्ग किलो मीटर के क्षेत्र में एक से ज्यादा पूजा मंडप नहीं होंगे। इससे लोगों में यानी आस पास के मुहल्लों के लोगों में भाईचारा भी बढ़ेगा। पूरे शहर में फिर भी हजार मंडप तो होंगे ही और इतने कम नहीं। आखिर भगवान मानने वालों को थोड़ा सा चल फिर के भगवान तक पहुँचने कि कोशिश तो करनी चाहिए। मुझे कोई आपत्ति नहीं कि कोई ईश्वर अल्लाह रब्ब मसीहा आदि में यकीन करता है। मैं एक हद तक साथ चलने को भी तैयार हूं, पर दूर तक चले गए तो फिर आप कर्मकांडों से अलग नहीं हो सकते। और वहां मुझे दिक्कत है। वैसे काश मेरा भी कोई मसीहा होता, कम से कम अपना रोना सुनाने के लिए तो कोई होता। इसलिए धार्मिक लोगों से मुझे ईर्ष्या ही होती है। कोई ज्यादा तंग करे तो फिर चिढ़ भी होती है। पर ठीक है, वह हमें झेलते हैं, तो हम भी ...