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Showing posts from October, 2011

उनका क्या करें

एक मित्र ने बतलाया कि बंगाली बिरादरी रात को बारह बजे कहीं पूजा के लिए जाने की सोच रही है। काली पूजा है रात को होती है। मैंने कहा कि मैं पूजा आदि में रूचि नहीं रखता। मुझे लगता है कि पूजा का हुल्लड़ बच्चों के लिए बढ़िया या फिर आप धार्मिक प्रवृत्ति के हों। मेरा तो मानना है कि कोलकाता में कानून बनाना चाहिए कि एक वर्ग किलो मीटर के क्षेत्र में एक से ज्यादा पूजा मंडप नहीं होंगे। इससे लोगों में यानी आस पास के मुहल्लों के लोगों में भाईचारा भी बढ़ेगा। पूरे शहर में फिर भी हजार मंडप तो होंगे ही और इतने कम नहीं। आखिर भगवान मानने वालों को थोड़ा सा चल फिर के भगवान तक पहुँचने कि कोशिश तो करनी चाहिए। मुझे कोई आपत्ति नहीं कि कोई ईश्वर अल्लाह रब्ब मसीहा आदि में यकीन करता है। मैं एक हद तक साथ चलने को भी तैयार हूं, पर दूर तक चले गए तो फिर आप कर्मकांडों से अलग नहीं हो सकते। और वहां मुझे दिक्कत है। वैसे काश मेरा भी कोई मसीहा होता, कम से कम अपना रोना सुनाने के लिए तो कोई होता। इसलिए धार्मिक लोगों से मुझे ईर्ष्या ही होती है। कोई ज्यादा तंग करे तो फिर चिढ़ भी होती है। पर ठीक है, वह हमें झेलते हैं, तो हम भी ...

इन बर्बरों का मुकाबला करें

फासिस्ट धड़ल्ले से नंगा नाचन नाच रहे हैं। एक वो जो राम या रहीम के नाम पर हमले करते हैं , जैसा हमारे मित्र प्रशांत पर किया , दूसरे वो जो सरकारी तंत्र में हैं , जिन्होंने सोनी सोरी की हड्डियाँ तोड़ने की कोशिश की है। क्या सचमुच यह देश इतनी तेजी से अँधेरे की ओर बढ़ता जा रहा है। सामान्य नागरिक को शांति से जीने के लिए हत्यारों के साथ सहमत होना पड़ेगा ? इन बर्बरों का मुकाबला जो जहाँ जैसे भी कर सकता है , करें।

मानव मूल्य क्या हैं?

मानव मूल्य क्या हैं ? मैंने एक युवा साथी का सवाल सुना और मुझे बिल्कुल ही बेमतलब तरीके से Walt Whitman की पंक्तियाँ याद आ गईं - A child said, What is the grass? fetching it to me with full hands; How could I answer the child? I do not know what it is, any more than he. वक्त गुजरने के साथ यह शक बढ़ता जा रहा है कि जो यह दावा करते हैं कि उनको मानव मूल्यों की समझ है , पेंच उन्हीं का ढीला है। ' सुना रहा है ये समाँ , सुनी सुनी सी दास्ताँ ' दोस्तों , बुनियादी बात प्यार है , बाकी सब कुछ उसी में से निकलता है। यह हमारी नियति है। हम किसी दूसरे ब्रह्मांड में नहीं जा सकते , कोई और गति के नियम हम पर लागू नहीं हो सकते। आंद्रे मालरो के उपन्यास 'La Condition Humaine ( मानव नियति )' में हेमेलरीख ( नाम ग़लत हो सकता है ; जहाँ तक स्मृति में है ) राष्ट्रवादियों के साथ लड़ाई में कम्युनिस्टों की मदद करने से इन्कार करता है , प्यार की वजह से ; और जब राष्ट्रवादी उसके बीमार बच्चे की हत्या कर देते हैं , तो वह लड़ने मरने के लिए निकल पड़ता है - प्यार की वजह से। ...