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Showing posts from June, 2011

वह जो मुझसे बातें करता है

बातें दिमाग में ही रहने लगी हैं। कम से कम कुछ तो पते की बात लिखनी है , एक दो लाइन नहीं , बात स्पष्ट होने लायक न्यूनतम सामग्री तो होनी ही है , सोचते हुए कुछ भी लिखा नहीं जाता। इसी बीच घटनाएँ होती रहती हैं , दोस्त बाग इतना लिख चुके होते हैं और जो कुछ मैं सोचता हूँ उससे बेहतर लिख चुके होते हैं कि फिर और लिखने का तुक नहीं बनता। मैं जिस संस्थान में काम करता हूँ , यहाँ साल में एक दिन आस - पास पर पर्याप्त दूरी पर कहीं एकांत में जाकर चुनींदा मुद्दों पर चर्चा होती है। इस बार यह दो साल के बाद हुआ। बड़ा विषय था ethos यानी हमारे संस्थान की प्रकृति क्या होनी चाहिए। अधिकतर बहस इस बात पर हुई कि मानव मूल्यों पर पढ़ाया जाने वाला कोर्स अनिवार्य होना चाहिए या नहीं। यह कहना ज़रूरी है कि यह कोर्स अलग अलग समूहों में अध्यापकों द्वारा छात्रों के साथ बातचीत के जरिए पढ़ाया जाता है। समय के साथ स्रोत - सामग्री में सुधार हुआ है , पर मूलतः कोर्स की प्रकृति बातचीत की ही है। हमारे यहाँ यह बहस चलती रहती है। पर इस बार पक्ष विपक्ष में जम कर बातें हुईं। एक ऐसे संस्थान में जहाँ अधिकतर छात्र डिग्री के बाद अच्छी त...