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Showing posts from December, 2010

हम गीत गाएँगे

24 को सुबह इंदौर के अस्पताल की भयानक खबर कि बच्चों पर प्रतिबंधित और खतरनाक रसायनों वाली दवाओं के प्रयोग किये गए हैं पढ़ी ही थी कि दोपहर तक खबर आ गयी कि बिनायक सेन को छत्तीसगढ़ की अदालत ने आजीवन कारावास की सज़ा दे दी है। विडंबना कि बिनायक बच्चों का डाक्टर है. नहीं ऐसा तो नहीं कि हम रोते नहीं पर एक दिन रो लेने के बाद मैंने घंटों देश विदेश के विरोध के गीत सुने। इसी सिलसिले में तीस साल पहले सुना आर्लो गथरी का ' एलिसेस रेस्तरां ' भी दुबारा सुना। और लगा सचमुच किस तरह मुक्तिबोध के शब्दों में जन जन का चेहरा एक है। जैसे जन का चेहरा एक है उसी तरह अत्याचारियों का चेहरा भी एक है। इसलिए हम जो जितना कर सकते हैं करेंगे। कल इलीना को अगर यह देखना पड़ा है कि दिल्ली के संस्थान आई एस आई को भेजी गयी मेल को देश की पुलिस पकिस्तान की आई एस आई को भेजी मेल कह कर अदालत में पेश करती है तो किसी भी पढ़ने लिखने सोचने वाले आदमी की इस देश में कोई बिसात नहीं है। इसलिए हर समझदार आदमी को तय करना ही होगा कि हम किस ओर खड़े हैं। रस्म बकौल फैज़ अभी यही है कि कोई न सर उठा कर चले। फिलहाल मैं आर्लो गथरी का ...

खुला घूम रहे हो

कई सालों के बाद आई आई टी कानपुर गया . जब वहाँ के अध्यापकों को यह कहते सुना कि वे उस कैम्पस को बीलांग करते हैं , तो अजीब सा लगा . और पहली बार यह तीखा अहसास हुआ कि छात्रों और अध्यापकों की कैम्पस के प्रति भावनाओं में कितना फर्क होता है . लौटा तो कानपुर से जुखाम और पेट की खराबी लेकर लौटा . आजकल कहीं भी आने जाने में डर लगता है . कुछ न कुछ गड़बड़ होती ही रहती है . और कुछ नहीं तो लम्बी यात्राओं के दौरान माइग्रेन तो है ही . इसी के साथ काम का दबाव - सभाएं , पिछले सेमेस्टर का बाकी काम , अगले सेमेस्टर की तैयारी ... गनीमत यह कि यहाँ ठण्ड से छुटकारा है . दो तारीख को फिर दिल्ली जाना है और डर रहा हूं कि कैसे ठण्ड झेलूँगा . बहरहाल लौट कर ब्लॉग का हाल देखा तो पाया कि किसी ने टिप्पणी की है कि इतना कहते रहकर भी खुले घूमते हो , कुछ तो इस देश के लोकतंत्र की अच्छाई बखानो . लोकतंत्र की तो पता नहीं पर सचिन के गुण बखानने से कताराऊंगा नहीं . खेलों के मामले में हालांकि मेरा नजरिया यही है कि फालतू का टी वी के सामने बैठे वक़्त बर्बाद करने से अच्छा है कि खुद कुछ खेला जाए , पर कभी कभी इस तरह वक़्त मैं भी ...