बड़ी मुश्किल से तकरीबन २५ साल पहले हरदा शहर में गुजरे डेढ़ सालों पर संस्मरणात्मक कुछ लिख डाला। हरदा के ज्ञानेश चौबे ने ठान लिया है हरदा में रह चुके लोगों के संस्मरणों को इकठ्ठा कर किताब निकालेंगे। पुरानी बातों को लिखने में डर लगता है। खासकर जब जल्दबाजी में लिखा जाये। बहरहाल लिख डाला और अब जिनको बुरा लगे तो लगे। पांच सितम्बर को हरदा जाने की हामी भी भर दी; अब सोच रहा हूँ कि नागपुर से सीधी बस ले लूं तो कैसा रहेगा। हो सकता है बेतूल से रास्ता ठीक हो। एक बार गूगल मैप देखकर लम्बी यात्रा में जाकर फँस गया था। बेलारी होकर जाना था जहां रेड्डी भाइयों की कृपा से सभी सडकें खुदी हुई हैं। कई बार बड़ी तकलीफ के साथ कुछ बातें लिखी जाती हैं। जो सबको अच्छी नहीं लगतीं। किसी अन्य प्रसंग पर कभी यह कविता लिखी थी जिसे दोस्तों ने अच्छी तरह लिया - आशीष ने तो शायद अपने ब्लॉग में पोस्ट भी किया था। जब शहर छोड़ कर जाऊँगा कुछ दिनों तक कुछ लोग करेंगे याद छोड़ी हुई किताबें रहेंगीं कुछ दोस्तों के पास कपड़े या बर्त्तन जैसी चीज़ें छोड़ने लायक हैं नहीं जो रह जाएँगीं फेंकी ही जाएँगीं कुछ तो फटे पैरों के चिह्न...