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Showing posts from March, 2010

लाल्टू तुम कहाँ रहे

लाल्टू तुम कहाँ रहे - कहते हैं इस बीच इतिहास रचा गया। मैं निहायत ही पिद्दी सी लड़ाई में लगा था। एक कहने को आधुनिक पर दरअसल सामंती संस्था से छूटने की जिहाद में जुटा था। तकरीबन कुछ भी नहीं करने के बावजूद कमाल यह कि दोस्तों की मुहब्बत फिर भी बढ़ती ही रही। कई दोस्तों को कह चुका हूँ कि इस चिट्ठे की शुरुआत इस तरह करुँगा, इसलिए इस शुरुआत में वह मजा नहीं आ रहा जो चाहता था। तो रोचक बात क्या हुई। सबसे रोचक बात यह थी कि जहाँ से छूट रहा था वहाँ विभाग के गैरशैक्षणिक कर्मचारियों ने मुझे चाय समोसा पार्टी दी। मुझे अंदाजा भी न था कि मुझे चाहने वालों में वे भी हैं। अब इतना बूढ़ा हो गया हूँ कि आँसू सूख गए हैं, झट से रो नहीं पाता। इसलिए लंबे समय तक रोता हूँ। मेरे दोस्त दोस्त हैं क्योंकि वे जानते हैं कि तमाम कमजोरियों के बावजूद मैं अब भी सपने देखता हूँ कि एक सुबह ऐसी आएगी कि ज़मीं पर लोग फूल से महकेंगे, कि हर कोई ग़म की शायरी भूल जाएगा, कि हिटलर और मोदी भी नफरत के रथों पर सवार हो राज करने का खयाल छोड़कर प्यार के गीत गाते भंगड़े नाचना चाहेंगे। बहरहाल चेतन की मदद से जाते जाते भी साथियों के साथ एक बेहतरीन शख्...