कल प्रशांत भूषण का व्याख्यान था। छात्रों की पहल पर प्रशांत आया था। आदिवासी इलाकों में खदान कंपनियों द्वारा भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई और उनके हित में सरकार ने जनता के खिलाफ जो जंग छेड़ी हुई है उसके बारे में विस्तार से प्रशांत ने बतलाया। कुछ बातें जो तुरंत याद आ रही हैं उन्हें नीचे लिख रहा हूँ। १। निजीकरण की वजह से देश की खनिज संपत्ति सस्ती कीमतों में विदेश जा रही है। इसमें जो मुनाफा हो रहा है उसका १% सरकार को रायल्टी मिलती है। कोई दस बारह हजार लोगों को रोजगार मिलता है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि होती है पर इसकी कीमत के बतौर खनिज संपदा का जाना ही नहीं, जंगलों का कटना, लाखों की तादाद में लोगों का विस्थापन, वन्य पशुओं का विनाश आदि साथ होते हैं। २। अगर सरकार सचमुच माओवादियों के बारे में चिंतित है तो पहला सवाल यह होना चाहिए कि माओवादियों की संख्या में हाल के सालों में वृद्धि कैसे हुई है। नई भर्त्ती उन लोगों की है जो सरकार की मार से और विस्थापन की पीड़ा से तंग आकर बंदूकें उठाने को मजबूर हुए हैं। इसलिए पहली चिंता उन निजीकरण की नीतियों पर प्रश्न उठाने की होनी चाहिए जिनको लागू करने की वजह से य...