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Showing posts from September, 2008

शब्दः दो कविताएँ

1 जैसे चाकू होता नहीं हिंस्र औजार हमेशा शब्द नहीं होते अमूर्त्त हमेशा चाकू का इस्तेमाल करते हैं फलों को छीलने के लिए आलू गोभी या इतर सब्ज़ियाँ काटते हैं चाकू से ही कभी कभी गलत इस्तेमाल से चाकू बन जाता है स्क्रू ड्राइवर या डिब्बे खोलने का यंत्र चाकू होता है मौत का औजार हमलावरों के हाथ या उनसे बचने के लिए उठे हाथों में कोई भी चीज़ हो सकती है निरीह और खूँखार पुस्तक पढ़ी न जाए तो होती है निष्प्राण उठा कर फेंकी जा सकती है किसी को थोड़ी सही चोट पहुँचाने के लिए बर्त्तन जिसमें रखे जाते हैं ठोस या तरल खाद्य बन सकते हैं असरदार जो मारा जाए किसी को शब्द भी होते हैं खतरनाक सँभल कर रचे कहे जाने चाहिए क्या पता कौन कहाँ मरता है शब्दों के गलत इस्तेमाल से। 2 सीखो शब्दों को सही सही शब्द जो बोलते हैं और शब्द जो चुप होते हैं अक्सर प्यार और नफ़रत बिना कहे ही कहे जाते हैं इनमें ध्वनि नहीं होती पर होती है बहुत घनी गूँज जो सुनाई पड़ती है धरती के इस पार से उस पार तक व्यर्थ ही कुछ लोग चिंतित हैं कि नुक्ता सही लगा या नहीं कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन कह रहा है देस देश को फर्क पड़ता है जब सही आवाज नहीं निकलती जब किस...

चलो मन आज खेल की दुनिया में चलो

बिहार में बाढ़ की स्थिति और उड़ीसा के दंगों से मन ऐसा बेचैन था कि कई बार लिखते लिखते भी कुछ लिख न पाया। इसी बीच एक धार्मिक प्रवृत्ति के सहकर्मी ने कैंपस में हुई गणेश पूजा पर एक कविता लिखी। आम तौर पर मैं छंद में बँधी कविता में रुचि नहीं लेता, पर मुझे साथी की चिंताएँ ज़रुरी लगीं। उसे यहाँ दे रहा हूँ। गणपति बप्पा ************************** गणपति बप्पा लाये गये, सत्कार किया गया उनका . व्यवस्थित सज्जित कमरे में, आसन तैयार हुआ उनका. बैठाकर लोग जो लाये थे, कुछ इधर हुये कुछ उधर हुये. पता ही न चला उनका, जो लाये थे वे किधर गये. सुना गणपति जी ने सत्कार घोष, मन में मोद मनाया. क्षणिक थी वह घोष गर्जना,फिर छा गई चुप्पी छाया. सोचा मन में क्यों लोगों ने, लाकर यहां बैठाया. क्षणिक ही है यह श्रद्धा, सबने अपना व्यापार चलाया. कोई नहीं समय है देता, भक्ति श्रद्धा पूजा में, समय गंवाते मानव हैं सब, अपना पराया दूजा में. भूला भटका कोई आया, माथ नवाकर चला गया. कोई-२तो आकर बस, हाथ हिलाकर चला गया. यूं ही आते जाते हैं, कदाचित् फल फूल भोग चढा गये. एकान्त निर्जन कमरे में, लोग मुझे बस बिठा गये. क्यों बिठाया कुछ न क...