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Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Saturday, September 27, 2008

शब्दः दो कविताएँ

1


जैसे चाकू होता नहीं हिंस्र औजार हमेशा
शब्द नहीं होते अमूर्त्त हमेशा

चाकू का इस्तेमाल करते हैं फलों को छीलने के लिए
आलू गोभी या इतर सब्ज़ियाँ काटते हैं चाकू से ही
कभी कभी गलत इस्तेमाल से चाकू बन जाता है स्क्रू ड्राइवर या
डिब्बे खोलने का यंत्र
चाकू होता है मौत का औजार हमलावरों के हाथ
या उनसे बचने के लिए उठे हाथों में

कोई भी चीज़ हो सकती है निरीह और खूँखार
पुस्तक पढ़ी न जाए तो होती है निष्प्राण
उठा कर फेंकी जा सकती है किसी को थोड़ी सही चोट पहुँचाने के लिए
बर्त्तन जिसमें रखे जाते हैं ठोस या तरल खाद्य
बन सकते हैं असरदार जो मारा जाए किसी को

शब्द भी होते हैं खतरनाक
सँभल कर रचे कहे जाने चाहिए
क्या पता कौन कहाँ मरता है
शब्दों के गलत इस्तेमाल से।


2

सीखो शब्दों को सही सही
शब्द जो बोलते हैं
और शब्द जो चुप होते हैं

अक्सर प्यार और नफ़रत
बिना कहे ही कहे जाते हैं
इनमें ध्वनि नहीं होती पर होती है
बहुत घनी गूँज
जो सुनाई पड़ती है
धरती के इस पार से उस पार तक

व्यर्थ ही कुछ लोग चिंतित हैं कि नुक्ता सही लगा या नहीं
कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन कह रहा है देस देश को
फर्क पड़ता है जब सही आवाज नहीं निकलती
जब किसी से बस इतना कहना हो
कि तुम्हारी आँखों में जादू है
फर्क पड़ता है जब सही न कही गई हो एक सहज सी बात
कि ब्रह्मांड के दूसरे कोने से आया हूँ
जानेमन तुम्हें छूने के लिए।
(जनसत्ताः २१ सितंबर २००८)

3 Comments:

Blogger anurag vats said...

jansatta men hi padh gaya tha in kavitaon ko...pasand aain...

9:15 PM, September 27, 2008  
Blogger Prakash Badal said...

वाह चाकू के रूप का वर्णन बेहतर कविता बना है, बधाई।

11:35 PM, November 12, 2008  
Blogger Neelima said...

अच्छी कविताएं पढवाईं आपने !

10:59 AM, November 20, 2008  

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