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Showing posts from February, 2008

प्रोफेशनल अवसादी और धंधा-ए-अवसाद

मैं अपने आप को प्रोफेशनल अवसादी कह सकता हूँ। करें भी क्या - चारों ओर रुलाने के लिए भरपूर सामग्री है। एक मित्र ने पूछा कि सुखी हो - मैंने लिखा कि सुखी तो नहीं हूँ, पर दुःखों के साथ जीना सीख लिया है। यहाँ तक कि अपने दुःखों के साथ जीते हुए दूसरों को सुख देने में भी सफल हूँ। एक और मित्र का कहना है कि फिर मेरा अवसादी होने का दावा ठीक नहीं है। उसके मुताबिक विशुद्ध अवसादी वही हो सकता है जो दूसरों को रुलाने में सफल है। उस तरह से देखा जाए तो बुश और मोदी में अच्छी प्रतियोगिता हो सकती है कि अवसाद विधा में नोबेल पुरस्कार किस को मिलेगा। बहरहाल एक साथी अध्यापक ने इस चिंता के साथ कि मेरे अवसाद को अड्डरेस किया जाना चाहिए, मुझे बतलाया कि मुझे अवसाद मोचन के धंधे में जुटी एक कंपनी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम की जानकारी पानी चाहिए। वह खुद अपने किसी बुज़ुर्ग अध्यापक के कहने पर इस कंपनी के चार दिवसीय कार्यक्रम को झेल रहा था। आखिरी दिन यानी मंगलवार की शाम को प्रतिभागियों को कहा गया था कि वे अपने किसी परिचित को साथ लाएँ ताकि इस अद्भुत इन्कलाबी शिक्षा की जानकारी मेहमानों को भी मिल सके। बहरहाल मैंने अपने उदारवाद...