सुनील ने अपनी टिप्पणी में अफ्रीका दिवस का जिक्र किया तो पुरानी यादें ताजा हो गईं। एक जमाना था जब पैन अफ्रीकी आंदोलन शिखर पर था और दुनिया भर में आज़ादी और बराबरी के लिए लड़ रहे लोग अफ्रीका की ओर देख रहे थे। सत्तर के दशक के उन दिनों फैज अहमद फैज ने नज़्म लिखी थी 'आ जाओ अफ्रीका।' मैंने फैज को ताजा ताजा पढ़ा था और ऊँची आवाज में पाकिस्तानी मित्र इफ्तिकार को पढ़ कर सुनाता था: आ जाओ अफ्रीका मैंने सुन ली तेरे ढोल की तरंग और बाब मार्ली के अफ्रीका यूनाइट पर हम लोग नाचते। पहली मई को अफ्रीका दिवस मनाया जाता था। पता नहीं मैंने कितनी बार जमेकन ग्रुप्स से रेगे टी शर्ट मँगाए और लोगों को बेचे या बाँटे। मेरे पास तो अब कोई टुकड़ा भी नहीँ है, पर हमारे उस जुनून को याद करते हुए मेरे बड़े भाई ने कोलकाता में अभी भी उनमें से एक टी शर्ट सँभाल कर रखा हुआ है। बाब मार्ली का चित्र है और किसी गीत की पंक्तियाँ। मार्ली का एक गीत redemption song जो उसने सिर्फ गिटार पर हल्की लय में गाया था, उसकी कुछ पंक्तियाँ मुझे अभी भी याद हैं (त्रुटियों से बचने के लिए नेट से ले रहा हूँ): ... Wont you help to sing Th...