सीख मिली है कोविड की - बीजेपी को वोट नहीं - नो वोट टू बीजेपी - 'नया पथ' के ताज़ा अंक में प्रकाशित पिछले डेढ़ साल से समूची धरती पर जो कहर बरपा है , उससे शायद ही कोई अछूता रह पाया है। हर किसी ने परिवार में या अपने परिचितों में किसी न किसी को खोया या गंभीर रूप से बीमार पाया है। लॉक डाउन और सामाजिक दूरी के बीच जीते हुए मानसिक थकान और अवसाद में हर कोई जाने - अंजाने आतंक के साए से घिर गया है। यह महामारी सचमुच इतना बड़ा आतंक नहीं है , जितना कि हमें लगता है। जो मौतें हुई हैं , वे धरती पर इंसान की पूरी तादाद के सामने नगण्य हैं। घरों में बंद रहने से सड़कों पर ट्रैफिक कम हुआ है , शहरी हवा में प्रदूषण कम हुआ है , और ऐसी वजहों से सामान्य हाल में जो मृत्यु - दर होती है , उससे कोई ज्यादा इस दौर में नहीं है। निकम्मी सरकार की वजह से हुई बेवजह मौतें और सनसनी फैला कर रोटी कमाने वाली मीडिया की मिलीभगत से आतंक का माहौल बढ़ा है। आतंक न भी हो , फिर भी कोविड महामारी के बड़े प्रभाव होने चाहिए। इससे पहले जब भी महामारी आई है , वह छोटी अवधियों में यानी महीनों तक भौगोलिक रूप से सीमित रही है। जब बड़े पैमाने पर...