Skip to main content

Posts

Showing posts from January, 2020

फरमान जारी हुआ है

नेता का तोहफा आओ मुल्क के लोगो काश्मीर से कन्यकुमारी तक लाइन लगाओ महान नेता का हुक्म है कि मुल्क की सारी समस्याएँ बस तुम्हारे होने से है फरमान जारी हुआ है कि कन्याकुमारी में आखिरी छोर पर खड़े नागरिक के पाछे बाँधा जाएगा देशभक्त वैज्ञानिकों द्वारा आविष्कृत नव्यतम बम परमाणु , लेज़र वगैरह बहुत कुछ है इस बम में बत्ती लगाते ही पल में सबको पाकिस्तान भेजा जाएगा वहाँ जाकर लोकतंत्र की माँग करना यह नेता का तोहफा है आज रात बारह बजे यह शुभकार्य संपन्न होगा दुनिया भर के हुक्काम रीस से भर गए हैं कि हिंदुस्तान के शहंशाह ने यह कारनामा दिखलाना है अलग - अलग ज़ुबानों में खबरें सुनाई जा रही हैं  कहीं नई जंगें छिड़ गई हैं कि कौन पहले हमारे नेता को गले लगाता है लाइन में खड़े होने वाले हर किसी को बार - बार राष्ट्रगान सुनाया जाएगा बाबा श्यामदेव को नाभि के नीचे उत्तेजना के लिए बुलाया जाएगा सब पाकिस्तान चले जाएँगे और बस हमारा नेता गटर - गैस की चाय - बू में सराबोर श्यामदेव के साथ अर्द्ध - पद्मासन करता अकेले रह जाएगा इस ...

मलंगों की ज़िंदगी में बदलाव

मुल्क की माली हालत सुधारने का फॉर्मूला मलंगों को बाँध रखने की नई तकनीक आ गई है। केंद्र खोले गए हैं जहाँ चौबीस घंटे जिस्म के पोर दिखाए जाएँगे , जिनकी खोज हाल में हुई है। मलंग इनको देखकर नाचते हैं और कभी नहीं रुकते। नाचते हुए वे टट्टी - पानी करते हैं , चाय नाश्ता करते हैं और हुक्काम की जै - जैकार करते हैं। बेशक यह मलंगों की ज़िंदगी में बड़ा बदलाव है। वे दौड़ते आते हैं और अंदर जाने की माँग करते हैं। कुछ पोस्टर लिए खड़े होते हैं , जिनपर लिखा है - हाइल हिटलर , हाइल हमारा नेता , जै गोमाता। केंद्र से बाहर खड़े होकर काँच की दीवारों से वे अंदर के मंज़र देखते हैं। तरह - तरह के जिस्मानी पोर देखते झूमते हैं। खुद पर चाबुक बरसाते हैं। रति - अतिरेक जैसी चीखें गूँजती हैं। उनको सँभालने आए सिपाही उनके उल्लास में शामिल हो जाते हैं। नाचते हुए ताप के एहसास से वे वर्दियाँ खोल डालते हैं। कुछ जाँघिए पहने नाचते हैं। यह तकनीक मुल्क की माली हालत सुधारने का फॉर्मूला है। हुक्मरान अपने - अपने इदारों में हर कारिंदे को मलंग - नाच में शामिल होने के लिए कहते हैं। लोग सुबह लंबी कतारों में खड़े होते हैं और शाम...

हर शहर प्रतिरोध हर कहीं इंसान

जब तक चाँद देख पाता हूँ , खुद को आज़ाद रखूँगा उस शाम एक खेत के किनारे सड़क पर खड़े मैंने आस्माँ में चाँद देखा। चाँद घूमने निकला था। हम अपने तय रास्ते पर नहीं चल रहे थे। चाँद हमारी भटकन देख रहा था। शाम धुँधली - सी थी और हम बज़िद इस ओर चले आए थे। पास छोटा शहर था। यहाँ की अजान और मंदिरों की घंटियाँ किसी भी छोटे शहर के अजान और मंदिर की घंटियाँ थी। यहाँ इंकलाब के सपनों का स्मारक धरती पर कहीं का भी इंकलाब के सपनों का स्मारक था। नीले - से फैल रहे अँधेरे में शहर का नाम प्रतिरोध था। पास से तरह - तरह के वाहन गुजर रहे थे , जो शहर की ओर आ - जा रहे थे। मैंने सोचा कि धरती पर चारों ओर आ - जा रहे लोग गुलाम हैं जिनको धरती का संतुलन बनाए रखने का काम दिया गया है। एहसास हुआ कि मैं गुलाम हूँ , पर मैंने तय किया कि मैं धरती को गतिकक्ष में बाँध नहीं रखूँगा। जब तक चाँद को देख पाता हूँ , खुद को आज़ाद रखूँगा। पैर गुलामी करते हुए थक चुके थे। मैं ज़मीं पर बैठ गया और मिट्टी पर लकीरें खींचने लगा। ढलती शाम के अँधेेरे में जागते हुए एक सपना देखा। सपना मुझसे थोड़ी दूर खड़ा था। वक्त के पैमाने पर...