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Showing posts from February, 2019

सुबह हर अगली सुबह जैसा सूरज उग आया था

उसकी कहानी वह मुल्क के एक प्रांत से दूसरे में जा रहा था ; जाते हुए वह सीटी बजा रहा था   शादी को हालाँकि तीन साल हो गए थे   वह बीबी केे बारे में ही सोचता चला था   स्टीयरिंग सीटी के आरोह - अवरोह के साथ बलखाती थी   और एकबार जब वह खड्ड में गिरते - गिरते बचा   पीछे से उसके साथी ने गंदी गाली निकाल उसे नसीहत दी थी   तो वह जोर से हँस पड़ा था   तो क्या उसे पता था कि उसे मारा जाना है   उसके मरने के बाद उसकी हँसी को अदालत में पेश किया गया   जिसकी याद उसके साथी को नहीं थी , जो बड़ी मुश्किल से बचा था   और दुनिया की हर हँसी उसके ज़हन से निकल गई थी वह हँसी उसकी बीबी तक पह ुँ च गई थी   और जज के पूछने पर कि क्या वह हँसी उसकी आसन्न मौत बता रही थी   बीबी पहले से ज्यादा जोर से रो पड़ी थी और यह प्रमाणित हो गया था कि   सचमुच उसे पता था कि उसकी मौत सड़क पर खड़ी थी   जिन्होंने उसे मारा था   वे घर लौटक...

वे एक नई कला के झंडाबरदार हैं

बच्चों सा खेल   तुमने देखा ?   उन्होंने तोड़ डाले खिड़कियों के काँच   जैसे बच्चों सा खेल खेल रहे हों   वे एक नई कला के झंडाबरदार हैं   सारे सुंदर को चुनौती दे रहे हैं   गर्व से शैतान का कलमा पढ़ रहे हैं   उनकी भी धरती है ,   उनका अपना आस्मां है   सृजन के अपने पैमाने हैं   ज़हनी सुकून के शिखर पर होते हैं   जब किसी का कत्ल करते हैं   या कहीं आग लगा देते हैं   बड़े लोग समझाते हैं कि रुक जाओ   सब कुछ तबाह मत करो   ऐसा कहते हुए कुछ लोग उनके साथ हो लेते हैं   पता नहीं चलता कि कब किस ने पाला बदल लिया है   टूटे काँचों को   समझाया जाता है   विकास , परंपरा , इतिहास जैसे शब्दों से   इसी बीच कुछ और कत्ल हो जाते हैं   कुछ और उनके साथ हो जाते हैं   दिव्य - गान सा कुछ गूँजता रहता है तुमने देखा ?     ...

लोग खुद से ही गुफ्तगू में लगे हैं

रोशनी है अँधेरे वक्तों की हर सुबह शक होता है कि कहीं विक्षिप्त तो नहीं हूँ   अखबारों में कुछ तो अफसाने होते हैं   कुछ मशीनों से लगातार पढ़ता - सुनता हूँ   सौदागरों की बोलियों के दरमियान जो कुछ भी सुनता है   मशीनों पर जाने कितने लोग कुछ सुनाना चाहते हैं   मेरी ही तरह इस शक से परेशान   कि हम सब पागल तो नहीं हो गए हैं   अब तो यह भी कभी - कभार ही होता है   कि कागज़ कलम उठाएँ और कविताएँ लिखें   इस भटकी हुई उम्मीद के साथ कि मरने के बाद कोई पढ़ेगा   क्या दुनिया में पेड़ - पौधे सब मर चुके हैं   क्या कोई पाखी , कोई जानवर नहीं रहा कि   लोग खुद से ही गुफ्तगू में लगे हैं   इस भ्रम में कि किसी और से बतिया रहे हैं   कोई किसी को पहचानता नहीं है   कोई नहीं जानता कि कौन कहाँ रहता है   कोई चाँद - सूरज नहीं है   पर रोशनी है अँधेरे वक्तों की   सोता हूँ , जागता हूँ , खुद को खुद की कहानी सुनात...