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Showing posts from November, 2018

मानव-केंद्रिक सभ्यता के लिए

उत्थिष्ठ , उत्थिष्ठ , मूढ़मति : एक पिता एकस के हम वारिस ('अनहद' पत्रिका के ताज़ा अंक में प्रकाशित :‍ अक्तूबर 2017 में गोवा में ‘संगमन -22’ में , नवंबर 2017 में हैदराबाद विश्वविद्यालय में छात्र संगठन के लिए और दिसंबर 2017 में भोपाल में पीपुल्स रिसर्च सोसायटी की सभा में दि ए व्याख्यान ों का सार ) 1 वाल्ट ह्विटमैन की एक छोटी कविता ' ओ कैप्टेन माई कैप्टेन ' स्कूल की पाठ्य - पु स्तक में थी , पर तब उन्हें जानते नहीं थे। कॉलेज में उनकी लंबी कविता ' सॉंग ऑफ माईसेल्फ ' पढ़ी । ह्विटमैन आधुनिकता के उस अच्छे पक्ष के चारण स्वर थे , जो हमारे यहाँ जनपदों के चारवाकों से लेकर , कबीर और गाँधी तक की हारी हुई लड़ाइयों वाला पक्ष है। अहं ब्रह्मास्मि , तत् त्वम सि की ध्वनि को तर्क और मानवता-केंद्रिक दिशा देते हुए ह्विटमैन ने अपना गीत लिखा था – वह लंबी कविता ' सॉंग ऑफ माईसेल्फ ' । I celebrate myself, and sing myself, And what I assume you shall assume, For every atom belonging to me as good belongs to you. खुदी को celebrate करना महज घमंड नहीं ...