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Showing posts from September, 2018

वे हमारी आँखों से देख रहे हैं

आज यह पुरानी कविता दुबारा देखी। याद नहीं कि पहले पोस्ट की है या नहीं। ढूँढने पर देखा कि अक्तूबर 2015 में एक बार पहली चार लाइनें सेरा टीसडेल की कविता के अनुवाद के साथ पोस्ट की हैं।  आज पूरी कविता पोस्ट कर रहा हूँ।  देखो , हर ओर उल्लास है 1 पत्ता पत्ते से फूल फूल से क्या कह रहा है मैं तुम्हारी और तुम मेरी आँखों में क्या देख रहे हैं जो मारे गए क्या वे चुप हो गए हैं ? नहीं , वे हमारी आँखों से देख रहे हैं पत्तों फूलों में गा रहे हैं देखो , हर ओर उल्लास है। 2 बच्चा सोचता है कुछ कहता है देखता है प्राण बहा जाता चींटी से , केंचुए से बातें करता है उँगली पर कीट को बैठाकर नाचता है कि कायनात में कितने रंग हैं यह कौन हमारे अंदर मौजूद बच्चे का गला घोंट रहा है पत्ता पत्ते से फूल फूल से पूछता है मैं और तुम भींच लेते हैं एक दूजे की हथेलियाँ जो मारे गए क्या वे चुप हो गए हैं ? ...