Skip to main content

Posts

Showing posts from January, 2016

जो दमक रहा, शर्तिया काला है

यूनिवर्सिटी में छात्रों का आंदोलन रुका नहीं है। कैंपस में आए तरह - तरह के  राजनैतिक नेताओं में सीताराम येचुरी और कविता कृष्णन ने सबसे बेहतर ढंग  से बातें रखीं। जे एन यू से आए छात्र नेता शहेला रशीद को सुनकर भी अच्छा  लगा। कल शाम शहर के सांस्कृतिक केंद्र ला मकां में रोहित वेमुला पर  सार्वजनिक सभा हुई। यह बात सामने आई कि जातिगत भेदभाव को जड़ से उखाड़ने का वक्त आ गया है। 25 जनवरी को चलो एचसीयू ( हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी ) का आह्वान है। दूसरी ओर यूनिवर्सिटी के अध्यापकों में अधिकतर यह चाहने लगे हैं कि नियमित क्लासें लगनी शुरु हो। चार दिन पहले यह छोटा लेख दैनिक भास्कर के लिए लिखा था। आज छपा  है - मामूली काट - छाँट के साथ।  -------------  क्या आपके किसी परिचित ने कभी खुदकुशी की है ? रोहित वेमुला एक युवा छात्र कार्यकर्ता था , जिससे दो चार बार मेरी मुलाकात हुई थी। आम सभाओं में मिले , एकबार शायद एक व्याख्यान के बाद भी हम कुछ देर तक साथ थे। एक इंसान जिसे मैं जानता था हमेशा के लिए गायब हो गया है। हम खबरों में किसा...

जैसे कोई पिता सबके सामने हँसते हुए भी रोता है

हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की मौत के हादसे से लाखों लोग सदमे में हैं। मैं देख रहा हूँ कि ऐसे वक्त भी कुछ लोग छात्रों की योग्यता पर सवाल उठा रहे हैं। कैसे निर्दयी लोगों से घिरे हैं हम!  पिछले हफ्ते परवेज हूदभाई का व्याख्यान करवाया था और फिर संजय जोशी ने प्रतिरोध के सिनेमा पर हमारे यहाँ बातचीत की थी। एक ताज़गी सी आ गई थी। पर कल शाम से मन खिन्न है। हिंसा हिंसा किसी भी खयाल में होती है कुदरत ने दी यह फितरत कि सोचने मात्र से कहीं किसी को रुला बैठते हैं हम कभी जीव हो जाता है निर्जीव जो कुछ देखता हूँ ज़ेहन के दरवाजों से अंदर जा बसता है चाहता हूँ कि छोटी बातें करूँ कैसे हैं आप और घर परिवार कैसा है जैसी जो सोचता हूँ वह रुक जाता है अचानक आ बसे दृश्यों में जैसे कोई पिता सबके सामने हँसते हुए भी रोता है कि उसकी बेटी बड़ी हो गई है यूँ मकसद बनता है चमकीले दृश्यों का आते हैं जो धरती के अंजान कोनों से चीख बन। कितनी फिल्में देखूँ कि जान लूँ कि हर ओर एक ही राग , एक ही...

लौटता हूँ सेरा टीसडेल की कविताओं में

ए बी बर्धन की बेबाकी को सुनने का अलग ही मज़ा होता था। उनकी ज़िंदादिली को याद करते हुए लौट रहा हूँ सेरा टीसडेल की कविताओं में - जिनकी सादगी मुझे  सहलाती है।     Words For An Old Air Your heart is bound tightly, let Beauty beware, It is not hers to set Free from the snare. Tell her a bleeding hand Bound it and tied it, Tell her the knot will stand Though she deride it; One who withheld so long  All that you yearned to take, Has made a snare too strong For Beauty's self to break. पुरानी हवा के लिए अल्फाज़ हुस्न को खबर हो कि तुम्हारा दिल है सख्त बँधा, इस जाल से छुड़ाना काम नहीं है उसका। उसे खबर करो कि घायल हाथों ने इसे बाँधा जकड़ा कह दो कि वह रोए पीटे बंधन बड़ा यह तगड़ा। अब तक जिसने सहा जो कुछ भी पाना चाहा तुमने ऐसा सख्त जाल रचा उसने जो न टूटेगा हुस्न की खुदी से। Mountain Water You have taken a drink from a wild fountain Early in the year; There is nowhere to go from the top of a mountain But down, my dear; And the springs that flow on the floor of t...

प्रवासी भारतीय और हम

प्रवासी भारतीयों से एक संवाद - 'गर्भनाल' के ताज़ा प्रवासी भारतीय विशेषांक में प्रकाशित लेख इसके पहले कि मैं प्रवासी भारतीयों से संवाद स्थापित करने की कोशिश करूँ , मैं अपने बारे में कुछ कह लूँ। इसे एक तरह से अपने ' क्रीडेंशल ' स्थापित करना भी कह सकते हैं। मैं कुल मिलाकर तकरीबन साढ़े आठ साल  यू एस ए में रहा हूँ। इसके अलावा इंग्लैंड के ब्रिस्टल में तीन गर्मियाँ बिताई हैं। एक बार दो हफ्तों के लिए जर्मनी में भी रहा हूँ। इसलिए प्रवासी होने का कुछ तज़ुर्बा मुझे है। ... आजकल प्रवासी भारतीयों की चर्चा आम होती रहती है। भारतीय राजनीति में उनकी रुचि पहले से अधिक हो , ऐसा नहीं है , पर वह पहले से अधिक दिखती है। इधर केंद्र में वर्तमान सत्तासीन दल ने प्रवासी भारतीयों को साथ जोड़ने की कोशिशें बढ़ाई हैं। इस पत्रिका के संपादक ने ध्यान दिलाया है कि " मेक इन इंडिया , स्किल इंडिया , क्लीन इंडिया , डिजिटल इंडिया , क्लीन गंगा " जैसे कई नारों के साथ प्रवासी भारतीयों को जोड़ा गया है। यह कहना ग़लत होगा कि सभी प्रवासी भारतीय एक जैसी सोच रखते हैं , पर अक्सर ...