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Showing posts from May, 2014

हर कुछ आगे ही आगे बढ़ता है, कुछ नहीं खत्म होता

31 मई 1819 को वाल्ट ह्विटमैन का जन्म हुआ था। “ अमेरिकन बार्ड " कहे जाने वाले उन्नीसवीं सदी के अमेरिकी कवि वाल्ट ह्विटमैन को मुक्त छंद की कविता का जनक माना जाता है। 1819 से 1892 तक के अपने जीवन में उन्होंने युगांतरकारी घटनाएँ देखीं। मैं वाल्ट ह्विटमैन को अपना गुरू मानता हूँ। संकट के क्षणों में रवींद्र , जीवनानंद और नज़रुल की तरह ही ह्विटमैन को ढूँढता हूँ। ह्विटमैन में मुझे ऐसी गूँज दिखती है जो कुमार गंधर्व के सुर या आबिदा परवीन की आवाज़ मे सुनाई पड़ती है , जो बाब मारली की पीड़ा में सुनाई पड़ती है।  उनकी लंबी कविता 'सॉंग ऑफ माईसेल्फ' के दो हिस्सों का अनुवाद :-  1 मैं उत्सव हूँ , और खुद को गाता हूँ , और चूँकि मेरा हर कण तुम्हारे भी अंदर है , जो मेरे मन में है , तुम भी उसे अपने मन में समा लो। मैं आराम से जीता हूँ और अपनी आत्मा से गुफ्तगू करता हूँ झुककर बसंत में उगी घास की पत्ती देखते हुए मैं आराम से सुस्ताता हूँ मेरी ज़बान , मेरे ख़ून का हर कतरा , इस मिट्टी से , इस हवा से बना है , यहीं थे माता पिता , जिन्होंने मुझे जन्म दिया ...

माया ऐेंजेलू - दो कविताएँ

Phenomenal Woman Pretty women wonder where my secret lies. I'm not cute or built to suit a fashion model's size But when I start to tell them, They think I'm telling lies. I say, It's in the reach of my arms The span of my hips, The stride of my step, The curl of my lips. I'm a woman Phenomenally. Phenomenal woman, That's me. I walk into a room Just as cool as you please, And to a man, The fellows stand or Fall down on their knees. Then they swarm around me, A hive of honey bees. I say, It's the fire in my eyes, And the flash of my teeth, The swing in my waist, And the joy in my feet. I'm a woman Phenomenally. Phenomenal woman, That's me. Men themselves have wondered What they see in me. They try so much But they can't touch My inner mystery. When I try to show them They say they still can't see. I say, It's in the arch of my back, The sun of my smile,...

बौद्धिकों के नए (पुराने) मुहावरे

यह आलेख आज जनसत्ता में 'बौद्धिकों के बदलते सुर' शीर्षक से छपा है। इसे पहले मैंने अंग्रेज़ी में थोड़ा और विस्तार से लिखा था। मेरे अंग्रेज़ी ब्लॉग में उस  मूल लेख को पढ़ सकते हैं। नई सरकार बनने के बाद से उदारवादी जाने जाने वाले बुद्धिजीवियों में बदले हालात में खुद को ढालने की कोशिशें दिखने लगी हैं। नए रुख को किसी नई नौकरी की तरह नहीं समझाया जा सकता। नए मुहावरे गढ़ने पड़ते हैं या जिन मुहावरों को पहले ग़लत कहकर अपनी जगह बना रहे थे , अब उनको दुबारा ढूँढकर सही का जामा पहनाना पड़ता है। ऐसी ही एक कोशिश हाल में अंग्रेज़ी के ' द हिंदू ' अखबार में छपे शिव विश्वनाथन के आलेख में दिखती है। नरेंद्र मोदी द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा और फिर उसके बाद गंगा में आरती से बात शुरू होती है। टी वी पर यह दृश्य आने पर संदेश आने लगे कि बिना कमेंट्री के पूरी अर्चना दिखलाई जाए। कइयों का कहना था कि इस तरह पूरी पूजा की रस्म को पहली बार टी वी पर दिखलाया गया। इसमें कोई शक नहीं कि मोदी की गंगा आरती पहली बार दिखलाई गई। पर धार्मिक रस्म हमेशा ही टी वी पर दिखलाए जाते रहे हैं। राष्ट्रीय नेता सार्व...

ज़मीं पर ही खड़ा हूँ

रद उड़ानें उनकी तरफ उड़ानें बरसों पहले रद हो गई हैं। युवा कवि जो कापीराइटर बन गया , अर्थशास्त्री जो एम एन सी का सी ई ओ है ,   सरकारी गलियारों के वरिष्ठ कवि , समीक्षक , वैज्ञानिक , सबकी ओर मेरी उड़ानें पटरी से ऊपर उठकर फिर उतर आती हैं। यमुना पार बसे दोस्तों में एक के पास मेरा दिल है उधर उड़ने से रोकता हूँ खुद को बार बार वर्षों पहले रद हो चुकीं जो उड़ानें उन्हें दुबारा उड़ने पर खुद ही खींच उतारता हूँ हालाँकि सब के साथ खुद को भी लगता है कि ज़मीं पर ही खड़ा हूँ हर क्षण। ( प्रतिलिपि 2009; 'सुंदर लोग और अन्य कविताएँ' (वाणी - 2012) संग्रह में संकलित)

क्या आप भी अखबार में पढ़ते हैं

एक बार पहले यह कविता कुछ और बातचीत के साथ पोस्ट कर चुका हूँ। फिर कर रहा हूँ।  लड़ाई हमारी गलियों की किस गली में रहते हैं आप जीवनलालजी किस गली में क्या आप भी अखबार में पढ़ते हैं विश्व को आंदोलित होते (देखते हैं) आफ्रिका , लातिन अमरीका क्या आपकी टीवी पर तैरते हैं औंधे अधमरे घायलों से दौड़कर आते किसी भूखे को देख डरते हैं क्या लोग – आपके पड़ोसी लगता है उन्हें क्या कि एक दक्षिण अफ्रीका आ बैठा उनकी दीवारों पर या लाशें एल साल्वाडोर की रह जाती हैं बस लाशें जो दूर कहीं दूर ले जाती हैं आपको खींच भूल जाते हैं आप कि आप भी एक गली में रहते हैं जहाँ लड़ाई चल रही है और वही लड़ाई आप देखते हैं कुर्सी पर अटके अखबारों में लटके दूरदर्शन पर जीवनलालजी दक्षिण अफ्रीका और एल साल्वाडोर की लड़ाई हमारी लड़ाई है।                (साक्षात्कार - 1989)

आँखों के लिए भी सूत्र हैं

 एक बहुत पुरानी कविता -  दुख के इन दिनों में छोटे दुःख बहुत होते है कुछ बड़े भी हैं दुःख हमेशा कोई न कोई होता है हमसे अधिक दुःखी हमारे कई सुख दूसरों के दुःख होते हैं न जाने किन सुख दुखों के बीज ढोते हैं हम सब सुख दुःखों से बने धर्म सबसे बड़ा धर्म खोज आदि पिता की नंगी माँ की खोज पहली बार जिसका दूध हमने पिया आदि बिन्दु से भविष्य के कई विकल्पों की खोज जंगली माँ के दूध से यह धर्म हमने पाया है हमारे बीज अणुओं में इसी धर्म के सूक्ष्म सूत्र हैं यह जानते सदियाँ गुजर जाती हैं कि इन सूत्रों ने हमें आपस में जोड़ रखा है अंत तक रह जाता है सिर्फ एक दूसरे के प्यार की खोज में तड़पता अंतस् आखिरी प्यास एक दूसरे की गोद में मुँह छिपाने की होती है सच है जब दुख घना हो प्रकट होती है एक दूसरे को निगल जाने की जघन्य चाह इसके लिए किसी साँप को दोषी ठहराया जाना जरूरी नहीं आदि माँ की त्वचा भूलकर अंधकार को हावी होने देना धर्म को नष्ट होने देना है अपनी उँगलियों को उन तारों पर चलने दो आँखें ज...