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Showing posts from September, 2013

छात्रों की संस्था 'क्रांति'

बेंगलूरू की राष्ट्रीय लॉ यूनीवर्सिटी ( विधि शिक्षा वि . वि .) के कुछ छात्रों की पहल से बनी संस्था ' क्रांति ' ने पिछले एक हफ्ते में शहर में जैसे जान डाल दी। पिछले हफ्ते शनिवार को रवींद्र कलाक्षेत्र के मुक्त आकाशी प्रेक्षागृह में कबीर कला मंच और तमिलनाड के एक दलित संगीत ट्रुप का अद्भुत कार्यक्रम था। सबसे अच्छी बात यह थी कि बड़ी तादाद में युवा मौजूद थे और उन्होंने लगातार नाचते हुए ऐसा समां बाँधा कि मज़ा आ गया। पर दूसरे दिन रविवार को फिल्मों के आयोजन में उनकी अनुपस्थिति उतनी ही अखरती रही। आनंद पटवर्धन स्वयं मौजूद थे और अपनी सभी फिल्मों के टुकड़े दिखलाने के अलावा ' जय भीम कामरेड ' पूरी दिखला कर आनंद ने विस्तार से अपनी फिल्मों पर चर्चा की। आज ' प्रतिरोध सम्मेलन ' का आयोजन था और युवाओं की अनुपस्थिति खास तौर पर अखर रही थी। प्रफुल्ल सामंतरा , आनंद तेलतुंबड़े , वोल्गा , गौतम मोदी , मिहिर देसाई , पराणजॉय गुहाठाकुरता , जया मेहता के भाषण के बाद गोआ से आई संस्था ' स्पेस ' ने अभिनय पेश किए। मैं डेढ़ घंटे की बस यात्रा कर सिर्फ अपना साथ देने के लिए गया था। आजकल ...

सितंबरनामा

पिछले पोस्ट में ' पुरुष पर अगली पोस्ट में ' लिखते हुए दिमाग में क्या था अब याद नहीं। इस बीच भोपाल गया और वहाँ बड़े कवियों और अन्य साहित्य - प्रेमियों के बीच कविता पाठ का मौका मिला। सोचा था वहाँ जो स्नेह मिला उस पर लिखूँगा , पर इसके पहले कि लिख पाता , मुजफ्फरनगर के दंगों की खबरें आने लगीं। पता नहीं मैं कब उम्र की वह दहलीज़ पार कर चुका हूँ कि अब गुस्सा कम और रोना ही ज्यादा आता है। यहाँ मैं हूँ कि इस बात से परेशान हूँ कि तीन कमरों वाले मकान में मेरे कमरे के साथ जो गुसलखाना है वह ऐसे बना है कि दिनभर फर्श गीला ही रहता है और उधर नफ़रत के सौदागरों के शिकार बच्चों की दिल दहलाने वाली कथाएं हैं। जाने कब से यह अतियथार्थ हमारा सच बना हुआ है। हम जीते हैं पर कब तक जिएँगे , इस तरह कौन जीना चाहता है , इस तरह कौन जीना चाह सकता है। भोपाल में ' स्पंदन ' संस्था की ओर से कविताएँ पढ़ने का आयोजन था। आयोजन ' स्पंदन ' के निर्देशक उर्मिला शिरीष के सौजन्य से हुआ , पर मुझे पता है कि इसके पीछे राजेंद्र शर्मा का स्नेह था। युवा मित्र ईश्वर दोस्त ने उनसे कहा था और इस तरह बात आगे चली...