--> टूटते परमाणु अहसास पुराना हो चला था कि अब प्रवाह धीमा पड़ गया है। उदासीन सी निश्चितता में दोनों मिलते थे इधर। मुलाकातें गिनती से ज्यादा हो चुकी थीं। दोनों ही जानते थे कि अब वह कुछ नहीं रह गया था जो कभी उनके बीच जादू जैसा खिलता था । आस - पास की सड़कें , दीवारें सब थक चुकी थीं। लोग - बाग की नज़रों में कोई कौतूहल न रह गया था। अनिश्चितताएँ , परेशानियाँ मिट रही थीं धीरे धीरे। क्या उन्हें याद है जब लाइब्रेरी में किताबों से नज़रें उठते ही सिर्फ एक दूसरे को देखती थीं ; जब सभाओं में औरों की बतियाती शक्लों में एक दूसरे को देखते थे ; जब एक दूसरे की आँखों में शरारतें बाँट लेते थे ; जब फोन पर काम के बहाने लंबी गुफ्तगू सिर्फ इसलिए होती थी कि दुनिया में तब सिर्फ एक दूसरे की आवाज़ इतनी मीठी होती थी ? ' याद आती है , पर नहीं आती। ' लगता है यह होना ही था। लंबे अरसे से , महीनों से , सालों से हो चला था। बहुत पहले कभी संकेत उभरने लगे थे , जैसे अनबोए ही उग आए थे क...