काश कि मैं भी अपने फेसबुक मित्रों की तरह हर दिन कुछ पोस्ट कर पाता। बहुत सारी बातें सबसे साझा करने का मन तो करता है , पर एक दो लाइन में ही कुछ कहने में मजा ही नहीं आता . यह तो हिंदी में टाइप करने की वजह से है कि कुल मिलाकर मैं भी जब लिखता हूँ तो कम ही लिखता हूँ। कई बार लगा है कि अब अंग्रेज़ी में लिखना शुरु करें। खास तौर पर जब यह अहसास होता है कि बहुत सारे छात्र दोस्त मेरा लिखा नहीं पढ़ पा रहे तब ऐसा लगा है , पर पता नहीं क्यों आखिरकार .... बहरहाल इन दिनों कुछ अच्छी फिल्में देखीं। मैं ज्यादातर लैपटाप पर ही फ़िल्में देखता हूँ , इसलिए वह मजा तो नहीं आता जो हाल में बैठकर बड़ी स्क्रीन पर देखमे का है , पर शहर की भीड़भाड़ झेलकर हाल तक जाने में भी मजा खत्म हो जाता है। खैर , जो फिल्में देखीं , उनमें से फिलहाल बांग्ला फिल्मों का ज़िक्र कर रहा हूँ। अब पुरानी हो चुकी हैं , पर बहुत पुरानी भी नहीं हैं। ' द जापानीज़ वाइफ ' अपर्णा सेन निर्देशित पिछले साल की बनी फिल्म है। कुनाल बोस की कहानी पर आधारित यह फिल्म सुंदरबन के ग्रामीण इलाके में एक स्कूल टीचर और उसकी जापानी पेन फ्रेंड में ख़तों के...